Friday, January 22, 2010
तरु ा सागर के कड़वे प्रवचन की कड़वी यादें
राष्ट्रसंत तरु ा सागर का प्रवचन सुनने का सौभा य प्रा त हुआ. कड़वे प्रवचन के लिए वि यात तरु ा सागर की बातों में कड़वाहट बिल्कुल ही नहीं है बल्कि आज समाज और ार- ार में व्या त असमानता, भेदभाव टूटते संयु त परिवार सहित अ य बुराइयों को वे बेखौफ उजागर करते हैं बदले में उ हें करतल वनि से वाहवाही मिलती है. तरु ा सागर के प्रवचन सुनने सैकड़ो लोग एक िात होते हैं जिनमें सभी धर्म और समाज के लोग होते हैं. तरु ा सागर पहले जैन संत होगें जिनके प्रवचन सुनने गैर जैनी ज्यादा सं या में होते हैं. यह उपल िध जैन समाज की नहीं बल्कि तरु ा सागर की है जिनकी वा ाी में कथित कड़वाहट के बावजूद गैर जैनी प्रवचन सुनने के लिए जा रहे हैं. मुझे एक प्रसंग याद है. दुर्ग छ तीसगढ़ में अपने प्रवचन के दौरान तरु ा सागर ने कहा कि मंदिर और मस्जिद का मह व एक बाथरुम से ज्यादा नहीं है. जिस तरह तन की गंदगी , मैल साफ करने हम बाथरुम जाते हैं उसी तरह मन की गंदगी साफ करने मंदिर मस्जिद जाते हैं. तरु ा सागर के इस कथन पर हि दू समाज में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई कि तु मुस्लिम समाज उ तेजित हो उठा और संत के कथन पर आप ित उठाने लगे. संत अथवा अ य किसी समाज की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई और न ही संत की ओर से कोई स्पष्टी कर ा ही दिया गया. संत दो दिन बाद दुर्ग से रवाना हो गये. यही समाज में फैली कड़वाहट है. संत अपनी बातें कड़वी करतें हैं लेकिन वह किसी को कड़वा नहीं लगता योकि आज देश और समाज में फैली कड़वाहट के पीछे कहीं न कहीं समाज का ठेकेदार खड़ा है जो समाज को पीछे खदेड़ रहा है.तरु ा सागर जैन समाज के संत हैं. पूरा समाज उनकी आगवानी केलिए नतमस्तक रहता है कि तु समाज के ही कथित लोग संत के आगमन पर भी धंधा करने से बाज नहीं आते . इसी बात की पीड़ा रह जाती है. संत के स्वागत में शहर में बड़े-बड़े होल्डिंग लग जाती है. प्रवचन के लिए भव्य मंच तैयार किया जाता है. आखिर ऐसी फिजूलखर्ची यों. एक तरफ संत सादगी का संदेश देते हैं तो दूसरी ओर उनके ही अनुयायी लाखों खर्च कर कार्यक्रम की सफलता का बखान करते े हैं और वाहवाही लूटने से भी नहीं चुकते. शायद उ हें नहीं मालूम की तरु ा सागर खुले आसमान के नीचे भी प्रवचन करने बैठ जाए तो उ ह सुनने भीड़ उमड़ पड़ेगी. ऐसे संतों का आगमन होता रहे और जनमानस को आ मा ाान होता रहे कि तु संत को लेकर भी धंधा करने की कोशिशों पर अंकुश लगना चाहिए.
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ठाकुर साहब नमस्कार.
ReplyDeleteआपका हिन्दी ब्लागजगत मे स्वागत है.