Wednesday, December 21, 2011

फेस बुक का क्रेज

आजकल फेसबुक का जमाना आ गया है, लोग अब ब्लाग को विस्मृत करते जा रहे है। ब्लाग में जो विचार उभरकर आते थे वह निश्चित रुप से पठनीय हुआ करता था किन्तु आज हर कोई फेसबुक की तरफ भाग रहा है।
फेसबुक में जहां लुभावने फोटो का क्रेज है वहीं इसको ज्यादा लोगो के देखने और पढ़ने की गुंजाईश है इसलिए भी
हर किसी का रुझान फेसबुक की ओर है।खैर जो भी हो फेसबुक में फेस दिखाने के साथ ही ब्लाग को जीवित रखने
की जरुरत है। ब्लाग एक तरह से संपूर्ण डायरी की तरह से जिसे वही पढ़ सकता है जो इसके बारे में जानता है.

Monday, October 31, 2011



राज्य स्थापना का ग्यारहवां वर्ष हम मनाने जा रहे हैं, इन ग्यारह वर्षो में छत्तीसगढ़ ने क्या खोया क्या पाया. यह आज चिंतन करने की जरुरत है.जहां तक विकास की बात है तो वह राजधानी रायपुर के आसपास ही सिमट कर रह गई है.विरासत में मिली नक्सली समस्या आज सुरसा की तरह मुंह फाड़ कर खड़ी है.वादे तो रोज किए जा रहे हैं किन्तु समस्याएं जस की तस है.एक तरफ अन्ना का आंदोलन चलता है तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के कई बड़े अधि...कारी रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं, आखिर इसे क्या कहें.सारी व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आती है.सरकार धान खरीदकरअपनी पीठ थपथपा रही है जबकि किसानों को उनकी उपज का लागत मूल्य भी नहीं िमल रहा है.गांवों की आबादी काम की तलाश में शहरों की ओर भाग रही है.सरकार के दो रुपयेकिलो चावल योजना से शहर और गावों में मजदूर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है. सरकारी अस्पताल की अंतिम सांसें चल रही है और सरकार निजी अस्पतालों सारी सुविधाएं दे रही है. आकड़े समेटने के चक्कर में शिविर के माध्यम से गरीबों को सामूहिक रुप सेअंधा बना दिया जाता है सरकार जांच के नाम पर केवल लीपापोती ही करती नजर आ रही है.यह सबकुछ पाया हमने नये राज्य के ग्यारह वर्षो में
तब भी हम कहते
छत्तीसगढ़
हैं, जय

Wednesday, August 31, 2011

लोकपाल से क्या सुधरेगी व्यवस्था

अन्ना हजारे के सत्याग्रह ने जो अभूतपूर्व सफलता पाई है। वह अपने आप में एक इतिहास बन गया है। समूचे भारत में गांवों से लेकर शहरों में जो शंखनाद हुआ है. वह आशा से कहीं ज्यादा है. दरअसल यह आम आदमी कीपीड़ा है जो राजतंत्र और नौकरशाह के बीच पीस रही है. आज सरकारी तंत्र पूरी तरह मक्कारी पर उतर आयी है. काम छोटा हो या बड़ा दाम चुकाने प़ड़ते हैं.चाहे तो शासन इस पर अंकुश लगा सकता है किन्तु लगाने की किसी को चिंता ही नहीं है. महात्मा गांधी ने आजादी के पहले ही भ्रष्टाचार की कल्पना कर ली थी और उसी समय उन्होने चेताया था किन्तु उनकी बातों पर किसी ने गौर नहीं किया आज उसी की पीड़ा सारा भारत भोग रहा है. अन्ना के दबाव के आगे सरकार तो झुक जरुर गई है किन्तु क्या लोकपाल बिल संसद से पास होने के बाद भी सही ढंग से लागू हो पाएगा. इस बात पर लोग अभी भी संदेह कर रहे हैं. लोकपाल बिल पास होने से उच्च स्तर के भष्टाचार तो रुक जाएंगे किन्तु सबसे नीचे स्तर का क्या होगा. जिस तरह राजनैतिक पार्टियां यह संकल्प लेती है कि समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को शासन की योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए उसी तरह लोकपाल बिल में जब तक यह उल्लेख नहीं होगा कि समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भष्टाचार से मुक्त नहीं किया जाएगा तब तक इस बिल का कोई मायने नहीं है क्योकि आज सबसे ज्यादा पीड़ित यही वर्ग है जिसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती जब तक नीचे स्तर का भष्टाचार समाप्त नहीं होगा तब तक इस आंदोलन का कोई मायने नहीं है. छोटे से छोटे काम के लिए भेंट पूजा की बनी परंपरा का अंत होना जरुरी है.
अन्ना समर्थक इस बात से खुश हो रहे हैं कि हमने सरकार को हरा दिया है . सरकार और संसद में वही लोग काबिज हैं जिनके खिलाफ यह बिल लाने की तैयारी है. क्या कोई अपने लिए फांसी का फंदा तैयार करेगा यह विचारणीय सवाल है. संसद में जब बिल पर बहस हो रही थी तब घोटालों के आरोपों में फंसे सांसद बड़ी होशियारी से सफाई देकर अपने आपको पाक साफ बताने की जुगत भीड़ा रहे थे.भारत में यदि सचमुच में जनतंत्र लाना है तो न केवल भष्टाचार बल्कि हर उस मामले में नागरिकों की जागरुकता जरुरी है जो जनहित का मामला है. आज पूरा देश मजहब,जातिवाद, आरक्षण जैसे मुद्दों पर बटा हुआ है और राजनीतिज्ञ इसी बटवारा का लाभ उठाते आ रहे हैं.जनता जर्नादन को भष्टाचार के साथ ही इन मुद्दों पर भी सचेत रहने की जरुरत है ताकि अब उनका शोषण कोई भी न कर सके.

Thursday, March 10, 2011

हिन्दी से अंग्रेज़ी में अनुवाद

aturday, February 26, 2011
Fantastic Saints

Suddenly can not believe it but this is the phenomenon in front of me, from Datia 75. Km away from village Pandkhoar Trikaalrshi the invisible power of the saint. Arrive at court with his solicitor at the time when his mind to remain Asrchyackih Pndkhoar diagnosed with the government already exists. Pndkhoar last days of the government in court fort began. He Yachkoan dozens of queries to be resolved. Court of their desire to call people and ask questions says. Solicitor is the question before the answer is written on a paper Pechi. Causes some girls to Sage but not a question in their minds. She says nothing is written on Pechi ask Baba to ask anything. Pndkhoar government told a gentleman that your wife has cancer, she believed it is true. In the same way the baby reached for the baby to a couple's second child the name that conveyed the idea of having their parent are. Similarly, given that many questions to ask, he knew the answer. Also got to see the big deal about them having the wrong idea caught there too.
In this modern age when today's new science - is showing the new duty. Then suddenly not believe such things but you got to see her the same thing to prove that any of spirituality and divine power can not deny. Pndkhoar government received power is amazing. They say they're all on the orders of Lord Hanuman. Between God and man are they in the role of lawyers. He also said they are following God's orders. Mislead people to make money or they do not have a purpose nor do they show a trick and no Avidaya Sanmohan the resort. When he is ordered Hanuman to the welfare of the people put the court. The miracle of the supernatural as a monk only Sattais year is made on sight. Now they are in Aquarius Taim. Day there looking his court which has been drawing crowds of thousands of people in Hadat. It is said that the number of Taim the Saints - Mahatma Aquarius come in, most of them are flocking in crowds Pndoakhr government tents.

Saturday, February 26, 2011

अदभूत संत


सहसा विश्वास नहीं होता किन्तु यह मेरे सामने की घटना है, दतिया से ७५ कि।मी दूर ग्राम पंडखोर से आए त्रिकालदशी संत के पास अदृश्य शक्ति है। उनकी दरबार में पहुंचने वाला याचक उस समय आश्र्चयचकित रह जाता है जब उसके मन की बात और निदान पण्डखोर सरकार के पास पहले से ही मौजूद होता है। गत दिनों पण्डखोर सरकार की दरबार दुर्ग में भी लगी। दर्जनों याचकों के शंकाओं का उन्होंने समाधान किया। दरबार वे अपनी इच्छा से लोगों को बुलाते हैं और सवाल पूछने को कहते हैं। याचक जब सवाल करता है तब उससे पहले ही एक कागज की पची पर उत्तर लिखा होता है। कुछ लड़कियां बाबा के पास पहुंचती है किन्तु कोई सवाल उनके मन में नहीं होता। वे कहती हैं कुछ नहीं पूछना और बाबा की पची पर भी लिखा होता है कुछ नहीं पूछना। पण्डखोर सरकार ने एक सज्जन को बताया कि तुम्हारी पत्नी को कैंसर है, उसने माना यह सच है। उसी तरह गोद में बच्ची को लिए पहुंचे एक दंपत्ति को बच्ची का दूसरा वह नाम भी बता दिया जिसे रखने का विचार उनके माता-पिता कर रहे हैं।इसी तरह अनेक सवाल को जवाब उन्होंने दिए जिसे पूछने वाला ही जानता था। सबसे बड़ी बात यह भी देखने को मिली कि उनके बारे में गलत विचार रखने वाले भी वहीं पकड़े गये।
आज के इस आधुनिक युग में जब विज्ञान नये-नये कर्तव्य दिखा रहा हो।तब इस तरह की बातों पर सहसा विश्वास ही नहीं होता किन्तु जो देखने को मिला उससे यही बात साबित होता है कि आध्यात्म और ईश्वरीय शक्ति से कोई इंकार नहीं कर सकता। पण्डखोर सरकार को मिली शक्ति गजब की है। उनका कहना है कि वे हनुमान जी के आदेश पर सब कुछ कर रहे हैं। भगवान और आदमी के बीच वे वकील की भूमिका में हैं। उन्होने यह भी कहा कि वे ईश्वर के आदेशों का पालन कर रहे हैं। धन कमाना या लोगों को गुमराह करना उनका कोई उद्देश्य नहीं है और न ही वे हाथ की सफाई दिखाते हैं और न ही कोई संमोहन विदया का सहारा लेते हैं। जब भी उन्हें हनुमान जी का आदेश होता है वे लोगों का कल्याण करने दरबार लगाते हैं। मात्र सत्ताइस वर्ष के इस चमत्कारी साधू का अलौकिक रुप देखते ही बनता है। अभी वे राजिम कुंभ में हैं। रोज वहां उनकी दरबार लग रही है जिसमें हजारों की तादात में लोगों की भीड़ जुट रही है। कहा जाता है कि राजिम में जितने भी संत-महात्मा कुंभ में आए हैं, उनमें सबसे ज्यादा भीड़ पण्डोखर सरकार के टेंट में ही उमड़ रही है। वे दो मार्च तक कुंभ में रहेंगे.

Thursday, February 24, 2011

रामदेव से जवाब मांगने का हक कांग्रेस को नहीं है.


योग गुरु बाबा रामदेव इन दिनों पेशेवर राजनीतिज्ञों के निशाने पर हैं क्योंकि बाबा रामदेव योग की शिक्षा देते-देते राजनीति की बात करने लगे हैं और राजनीति में जो मुद्दे वे उछाल रहे हैं उससे राजनीतिज्ञों के पेट में दर्द शुरु हो गया है।विदेशों बैंकों में जमा पैसा लाने की वात करने वाले रामदेव से सबसे ज्यादा दुखी कांग्रेस के नेता दिखाई दे रहे हैं तभी तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्गविजय सिंह भी इस लड़ाई में कूद गये हैं। उन्होंने बाबा के संपत्ति का हिसाब मांग दिया है। लगता है इस मामले में पासा कांगरेस के खिलाफ ही पड़ने वाला है क्योंकि बाबा ने तत्काल अपनी संपत्ति का हिसाब दे दिया है. अब बारी कांग्रेस की है. आजादी के अिधकांश बरसों तक देश में शासन करने वाली कांग्रेस आज कई मुद्दों पर कटघरे में खड़ी है. अगर भारत को अरबोंं खरबों रुपया विदेशों के बैंकों में जमा है तो उसका ६० से ७० फीसदी हिस्सा कांग्रेस नेताओं का ही होगा. शायद इसीलिए कांग्रेस उक्त संपत्ति के बारे में अपनी मंशा स्पष्ट नहीं कर पा रही है. बाबा रामदेव ने पूरे विश्व में स्वास्थ्य के प्रति जो जागरुकता पैदा की वैसा कोई भी नहीं कर पाया है.आज भारत का बच्चा-बच्चा बाबा रामदेव को जानने लगा है. योग करने की बात अब घर-घर होती है और बहुतायत नागिरक योग के माध्यम से अपने आपको स्वस्थ रखने का प्रयास तो कर ही रहे हैं.
बाबा रामदेव ने राजनीति मे आयी गंदगी को दूर करने का भी बीड़ा उठाया है जिसके कारण उनसे लोगों की भीड़ जुड़ रही है और यही पेशेवर राजनीतिज्ञों की पीड़ा का कारण बन रहा है। भारत स्वाभिमान को जगाने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया है, उससे जनता जर्नादन को बरसों तक बेवकूफ बनाने वाले लोग हलाकान हो रहे हैं। भष्टाचार के जनक वास्तव में राजनीतिज्ञ ही हैं. पूरा देश अब इस दलदल में गोते लगा रहा है. एक आदमी यदि इसके खिलाफ हो जाए तो उसका ज्यादा दिन तक जीना संभव नहीं है.भष्टाचार के खिलाफ वास्तव में बड़े आंदोलन की जरुरत है जो रामदेव बाबा जैसे संत की अगुवाई में ही संभव हो सकता है. जिस तरह से बाबा रामदेव की संपत्ति की जांच की मांग आज की जा रही है, उसी तरह प्रत्येक नेताओं की संपत्ति की जांच की मांग नागरिकों की ओर से उठनी चाहिए. आखिर जीवनभर खून पसीना बहाकर भी एक आम आदमी लखपति करोड़पति नहीं बन सकता और नेता देखते ही देखते कैसे अरबों का मालिक बन जाता है.जब तक इस तरह की मांग नहीं उठेगी और इसके लिए बड़े आंदोलन नहीं होगें तब तक यह सिलसिला चलता ही रहेगा. बाबा रामदेव से ब्योरा मांगने वालों को जवाब देने का अबसर आ गया है. बाबा के हर अनुयायी इसका जवाब हर काग्रेसी नेता को दे और उनसे पूछे कि बरसों तक राज करने वालें तुम इतने मालदार कैसे बन गये.

Friday, February 18, 2011

किससे कहें अपनी पीड़ा

आम आदमी की स्थिति आज बेहद ही खराब हो गई है। एक तरफ सरकार के नुमाइंदें नितनये घपले कर रहे हैं और आम आदमी मंहगाई के बोझ से बेहाल हो रही है। सरकार और उसमें बैठे नेताऔं का राग ही बदल गया है। आम आदमी की पीड़ा को कोई समझने को तैयार नहीं है। किसी शायर का यह कथन आज कितना सच लगता है।
खुशियां मनाने पर भी है मजबूर आदमी
आंसू बहाने पर भी है मजबूर आदमी
और मुस्कराने पर भी है मजबूर आदमी
दुनिया में आने पर भी है मजबूर आदमी
दुनिया से जाने पर भी है मजबूर आदमी...
सत्ता पर जब वापसी की बात होती है जब बड़े-बड़े वादे किए जाते है। आज देश की सत्ता कागऱेस के हाथ में है। यह वही पार्टी है जिसने सौ दिनों में मंहगाई कम करने का वादा की थी आज वही सरकार का मुखिया यह कहे कि मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे मंहगाई कम कर सकूं। माना जादू की छड़ी नहीं है किन्तु सरकार तो है जो कुछ भी कर सकती है। नेता जब अपनी कुसी बचाने के लिए आपातकाल लगा सकते हैं तो क्या मंहगाई कम करने के लिए एसा कोई कदम नहीं उठा सकते जिससे आम आदमी राहत महसूस कर सके। आम आदमी की चिंता आज किसे है। आम आदमी की स्थिति कुछ इस तरह की हो गई है॥
रिन्द बिकते हैं, जाम बिकता है
मैकदे का निजाम बिकता है
सुबह बिकता है, शाम बिकता है
आदमी अब तो आम बिकता है।
भूखों मरता है आज का आदमी
और उसका हर जुबान बिकता है।
लुभावन नारों वह हर बार बिकता है
फिर कौन उनकी परवाह करे
क्योंकि सबसे सस्ता हो गया है आज का आदमी....
किसी शायर की बरसों पहले लिखी यह पंक्तियां आज के आदमी और समय पर कितना सटिक बैठता है। मानों इंसानियत पर पहरा बैठा दिया गय़ा है। लोग केवल अपनी जेब भरने की चिंता में मगन है। मध्यम परिवार कैसे दो जून की रोटी जुगाड़ता है इस बात की चिता किसी को भी नहीं है। महंगाई का असर आज हर चीज पर पड़ने लगा है।इतना सबकुछ होने के बाद भी सरकार की नुमाइंदों का गैर जिम्मेदारा बयान आता है। यदि सरकार चलाने का साहस नहीं है, मंहगाई पर यदि नियंत्रण नहीं कर सकते तो गद्दी पर बैठे रहने का हक भी नहीं है। सरकार के लोग जिस तरह से घोटालों में फंसते जा रहे हैं उसे देखकर तो कोई भी आदमी सरकार से जवाबतलब कर सकता है। जिस सरकार का अपने मंत्रियों पर ही नियंत्रण नहीं वह मंहगाई पर क्या नियंत्रण करेगी।
सत्तारुढ़ पाटी को यह याद रखना चाहिए कि....
ए जनता के वादा को भूलने वाले
डूबने के करीब है तेरे सितार........,

Sunday, February 13, 2011

Tuesday, February 1, 2011

शराबबंदी की ओर बढ़ते कदम

छत्तीसगढ़ सरकार का वह निर्णय निशि्चत रुप से काफी सुकून और राहत देने वाला है जिसमें निर्णय लिया गया है कि आगामी वर्ष में छत्तीसगढ़ में कम से कम २५० शराब दुकानें कम हो जाएगी। सरकार का यह निर्णय शराबबंदी की ओर बढ़ते कदम की आहट मानी जा रही है। आज छत्तीसगढ़ पूरी तरह से नशा की लत में डूब चुका है।गांव-गांव में शराब दुकाने खुलने के कारण गांवों के युवा भारी तादाद में शराब के आदी हो चुके हैं। चूंकि बेरोजगारी की समस्या हर तरफ हावी है। युवा वर्ग मोबाईल युग मी जी रहा है। इसलिए पैसा कमाने की भूख हर किसी की बढ़ी है। इसी का फायदा उठाते हुए शराब माफिया युवा वर्ग को या तो नशे का अादी बना रहा है या फिर शराब कोचिया बनाकर उसे गलत राह पर चलने के लिए मजबूर कर रहा है। आज गांवों की शाति पूरी तरह से खंडित हो चुकी है।
सरकार एक तरफ गरीबों को दो रुपये किलों में चांवल उपलब्ध करा रही है, इससे काम करने की प्रवृत्ति समाप्त हो चुकी है। जब घर बैठे लोगों को अनाज मिल रहा है तो काम करने की जहमत कौन उठाए। इस प्रवृत्ति से जहां निठ्ठलों की फौज खड़ी हो रही है वहीं यही लोग नशे के आदी भी हो रहे हैं। आदमी की कमी की वजह से गांवों में लेबर की जबरदस्त समस्या उत्तपन्न हो रही है। खेती में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। यही हालत शहरों की है। सरकार की आबकारी नीति और ज्यादा धन अर्जन की चाहत ने जगह-जगह शराब दुकाने खोल दी है जिससे न केवल परिवार का परिवार तबाह हो रहा है बलिक् युवा पीढ़ी दिशाहीन होती जा रहा है। गां-गांव और शहर दंगे फसाद की घटनाएं बढ़ रही है। आए दिन कोई नकोई लूट का शिकार हो रहा है।
अब शायद सरकार की आंखें खुल गई है, इसीलिए सरकार अब शराब दुकाने घटाने जैसे निर्णय ले रही है। यह कदम शराब बंदी की दिशा में एक बढ़ते कदम माना जा रहा है। सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष में यह कदम उठा रही है। दरअसल सरकार की मंशा आगामी विधानसभा चुनाव के पूर्व प्रदेश में शराब बंदी लागू करना है।आने वाले वर्षो में सरकार शराब दुकानें घटाते जाएगी फिर अंतिंम वर्ष शराब बंदी लागू कर अपनी तीसरी पारी शुरु करने की तैयारी में है। सरकार चाहें किसकीभी रहे प्रदेश में अमन चैन की कामना हर किसी है।यह एक एेसा निर्णय होगा जिससे सरकार का ग्राफ सातवे आसमान पर पहुंच जाएगा। सरकार का प्रयास सराहनीय है।इसका स्वागत किया जाना चाहिए.

फेस बुक का क्रेज

आजकल फेसबुक का जमाना आ गया है, लोग अब ब्लाग को विस्मृत करते जा रहे है। ब्लाग में जो विचार उभरकर आते थे वह निश्चित रुप से पठनीय हुआ करता था ...