Wednesday, December 1, 2010

तरी नरी नहा नरी... से गूंजा शहर

छत्‍तीसगढ़ के दुर्ग नगर के युवा संगठन द्वारा गर्वमेन्‍ट स्‍कूल मैदान में आयोजित सुवा महो सव में आज जबरदस्त शमा बांधा. जहां एक ओर सुवा नृत्‍य मंडलियों की प्रस्तुति सराही गई वहीं दूसरी ओर छत्‍तीसगढ़ की प्रसिद्ध गायिका श्रीमती अल्का चंद्राकर, ममता चंद्राकर के गीतों ने दर्शकों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया. कार्यक्रम में भारी भीड़ उपस्थित थी. कार्यक्रम में मुख्‍य अतिथि श्रीमती वीणा सिंह पत्‍नी मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह, अध्‍यक्ष लता उसेंडी महिला बाल विकास एवं खेल मंत्री तथा दयालदास बघेल केबिनेट मंत्री उपस्थित थे. सांसद सरोज पाण्‍डेय के पहल पर आयोजित इस कार्यक्रम की सभी ने सराहना की. मुख्‍य अतिथि श्रीमती वीणा सिंह ने कहा कि दुर्ग जिला सौभाग्‍यशाली है, जहां ऐसे सांसद, विधायक हैं जो जनता की भावनाओं के अनुरूप उनकी प्रतिभाओं को निखारने के लिए ऐसे आयोजन करती है.

उन्‍होंने कहा कि यह आयोजन जनता के सहयोग से ही संभव हो सका है. उन्‍होंने यह भी कहा कि प्रदेश के मुख्‍यमंत्री भी भाग्‍यशाली है जिनको ऐसे सांसद, विधायक मिले हैं जो निरंतर जनता की भावनाओं और उन्‍हें आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे हैं. उन्‍होंने छत्‍तीसगढ़ की संस्कृति और कला को आगे बढ़ाने के लिए सांसद सरोज पाण्‍डेय द्वारा किए जा रहे प्रयास को स्वागतेय बताया. कार्यक्रम को मंत्री लता उसेंडी ने संबोधित करते हुए कहा कि लुप्त हो रहे सुवा नृत्‍य को यहां मंच देकर सांसद सरोज पाण्‍डेय ने सराहनीय कार्य किया है. उन्‍होंने ऐसे आयोजन होते रहने की वकालत की. कार्यक्रम को सांसद सरोज पाण्‍डेय ने भी संबोधित करते हुए सभी अतिथियों और कार्यक्रम में उपस्थित मंडलियों का आभार व्यक्त की.

कार्यक्रम में मंत्री दयालदास बघेल, विधायक डोमनलाल कोर्सेवाड़ा, वीरेन्‍द्र साहू, राजनांदगांव की पूर्व महापौर श्रीमती शोभा सोनी, प्रभारी महापौर दुर्ग श्रीमती जयश्री जोशी, पार्षद अजय वर्मा, आयुक्त डी.के. सिंह, पूर्व निगम अध्‍यक्ष दिनेश देवांगन, लाभचंद बाफना सहित अन्‍य लोग उपस्थित थे. कार्यक्रम की संयोजक सांसद सरोज पाण्‍डेय ने दीप प्रज्‍वलित कर सुवा महोत्‍सव की शुरूआत की. प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत युवा संगठन के संयोजक पार्षद अजय दुबे, विजय चांडक, शिव चंद्राकर, दीपक देवांगन, सभापति देवनारायण तांडी, श्रीमती चंद्रकला खिचरिया, ज्‍योति चंद्राकर, मीना सिंह, कुमुद बघेल, तरन्नुम कुरैशी,काशीराम कोसरे, गायत्री साहू, रत्‍नेश चंद्राकर, चंद्रिका चंद्राकर, शिवेन्‍द्र परिहार, उषा टावरी, श्रीमती सुभद्रा शर्मा सहित अन्‍य लोगों ने किया. श्रीमती वीणा सिंह एवं लता उसेंडी का सूता पहनाकर सांसद सरोज पाण्‍डेय द्वारा स्वागत किया गया. कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ कार्यक्रम में दुर्ग शहर सहित आसपास के ग्रामीण अंचलों से लोग भारी संख्‍या में उपस्थित थे. महोत्‍सव में 125 सुवा गीत मंडलियों ने भाग लिया है. जिन्‍हें पांच-पांच के ग्रुप में मंच पर पांच मिनट में अपनी प्रस्तुति देने का अवसर प्रदान किया गया. र्निणायक के रूप में डॉ. शैलजा चंद्राकर, कृष्‍ण कुमार चौबे, महेश चंद्र वर्मा, श्रीमती
रामेश्वरी यादव उपस्थित थी.

छत्‍तीसगढ़ के सुपर स्टार पहुंचे मंच पर

छत्‍तीसगढ़ी फिल्मों के सुपर स्टार अनुज शर्मा भी मंच पर उपस्थित हुए. अतिथियों के अनुरोध पर उन्‍होंने एक छत्‍तीसगढ़ी फिल्मी गीत भी गाया.

Sunday, August 1, 2010

मित्रता की परंपरा पुरानी

मित्रता आज के परिवेश में नये लुक में समाज के सामने आया है, जबकि भारत में मित्रता की कहानी बहुत ही पुरानी है। हमारे छत्तीसगढ़ में गांव-गांव में मित्रता की मिसाल लाजवाब है। गांवों में कई पीढियों से यह परंपरा कायम है।छत्तीसगढ़ के गांवों में मितान बदने की परंपरा है। जाति, धर्म छोटे बड़े इस परंपरा में कभी बाधा नहीं बन पाया। मितान होने के बाद दो परिवारों के बीच एक एसा रिश्ता स्थापित हो जाता था जो कई पीढियों तक निभाया जाता था। आज भी छत्तीसगढ़ के गांवों में यह परंपरा कायम है और पुरानी पीढि़यों द्वारा मितान के लिए की गई कुर्बानी याद की जाती है। जहां पुरुष आपस में मितान बनते थे वहीं महिलाएं मितानिन बनती थी। यह दोनों शब्द इतनी कामयाब रही कि सरकार की कई योजनाओं में इसका उपयोग हो रहा है।
किन्तु आज के इस आधुनिक युग में मित्रता का मायने ही बदल गया है। अब मितान बदने की परंपरा विस्मृत हो रही है। पुरुष-पुरुष अब मितान नहीं बन पा रहे हैं बल्कि आज के युवा वर्ग का रुझान अपने हम उम युवतियों की ओर ज्यादा होता है। उसके पीछे पाश्चात्य संस्कृति कारण है जिसके पीछे हम भाग रहे हैं।टीवी सहित अन्य कई संसाधनों ने वर्तमान पीढी का ध्यान भटका दिया है जिसके कारण आज का युवा वर्ग भटका हुआ है। फेंडशिप डे के नाम पर होटलों में महफिल जमना और खाने पीने के साथ एक दूसरे के लिए जान देने का वादा सहित न जाने कितने हथकंडे अपनाए जाते है। और रोज किसी न किसी को दोस्ती की आड़ में धोखा ही मिल रहा है। दो दिन पूर्व ही अखबार में एक खबर थी कि इंटरनेट के माध्यम से एक युवक और एक युवती के बीच दोस्ती हुई जिसने बाद में दैहिक शोषण का रुप धर लिया और मामला पुलिस तक पहुंच गया है। दोस्ती का कहीं कोई विरोध नहीं किन्तु आज दोस्ती का जो स्वरुप सामने आ रहा है वह घातक है।
दोस्ती के बारे में समय-समय पर कवियों और शायरों ने कई कविताएं और शायरी की है। यहां कुछ शायरों का दोस्ती के बारे में तजुर्बा बयान कर रहा हूं।
गजल
दोस्त बन-बन के मिले, मुझको मिटाने वाले
मैंने देखे हैं कई रंग बदलने वाले
तुमने चुप रहकर सितम और भी ढ़ाया मुझ पर
तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पर हंसने वाले
मैं तो इक लाख के हाथों बिका करता हूं
और होंगे तेरे बाजार में बिकने वाले
आखिरी बांकी सलामी दिले मुश्तर ले लो
फिर न लौटेंगे इनके रोने वाले
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मर्सरत पे रिवाजो का सख्त पहरा है
न जाने कौन सी उम्मीद में दिल ठहरा है
तेरी आंखों में झलकते हुए इस गम की कसम
ए दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है
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Thursday, July 29, 2010

छ तीसगढ़ में नक्सली हिंसा का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। कल तक सिर्फ पुलिस के जवानों को निशाना बनाने वाले नक्सली अब नागरिकों को भी मौत की नींद सुलाने में परहेज नहीं कर रहे हैं। सुकमा-दंतेवाड़ा मार्ग परयात्री बस को उड़ाकर पुलिस जवान, एसपीओ सहित गांववालों कीहत्या कर नक्सलियोंने जता दिया है कि उनका कोई सिध्दांत नहीं है और वे केवल आंतक फैलाकर वनांचलों में अपना राज चलाना चाह रहे हैं। दरअसल 6 अप्रैल को चि तलनार के जंगल में 76 जवानों की हत्या के बाद सरकार की सुस्त नीति और योजना तथा कार्यवाही में विलंब का ही फायदा उठाकरनक्सली लगातार वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। चि तलनार की घटना के बाद बीजापुर मार्ग पर पुलिस वाहन उड़ाकर 8 जवानों को मारने के बाद अब या यात्री बस पर निशाना साधा है और बड़ी वारदात को अंजाम देकर एक बार फिर पुलिस और सरकार को पीछे खदेडऩे में कामयाबी का झंडा गाड़ दिया है। 76 जवानों की हत्या के बाद तो ऐसा कोहराम मचा था मानों सरकार अब नक्सली समस्या का खात्मा कर ही दम लेगी किन्तु समय बितने के साथ ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इतनी बड़ी घटना के बाद न तो पुलिस का रवैया बदला और न ही शासन प्रशासन की तंद्रा ही टूटी। घटना के बाद केवल निंदा और नक्सलियों को कोसने के अलावा कुछ भी नहीं बचा. ज्यादा हल्ला होने पर केन्दीय गृह मंत्री का वक्तव्य और कार्यवाही तेज करने संबंधी बयान ही आता है. कार्यवाही कहां होती है इसका कुछ पता नहीं चलता. दूसरी ओर नक्सली एक वारदात की सफलता के बाद दूसरी वारदात को अंजाम देने की रणनीति बनाने में जुट जाते हैं.नक्सली हिंसा के कारण छ तीसगढ़ आज देश के सबसे ज्यादा अशांत क्षेत्र की श्रेणी मेंआ गया है. पिछले तीन माह के दौरान यहां नक्सलियों ने दो सौ से अधिक सिविलियन और जवानों को निशाना बनाया है. आतंकवाद और अलगाववाद केयुध्द से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में भी इतनी हत्याएं नहीं हुई है. आज देश का पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उडि़सा, म यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, छ तीसगढ़ और महाराष्टृ नक्सलवादकी चपेट में है किन्तु सर्वाधिक वारदातें छ तीसगढ़ में होना गंभीर चिंता का विषय है. छ तीसगढ़ सरकार और सुरक्षा ऐजेसियां लगातार चूक रही है जिसका फायदा नक्सली उठा रहे हैं. यह सरकार और प्रदेश के लिए काफी कठिन दौर है. इसे आज भी हल्के से नहीं लिया जाना चाहिए. लगातार वारदातों ने पुलिस के खुफिया तंत्र पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. जब भी कोई बड़ी वारदातें होती है, उसके दूसरे दिन आईबी की रिपोर्ट आती है कि बस्तर केनक्सलियों का लश्कर से संबंध है और उन्हेंप्रशिक्षणऔर पैसा लश्कर से मिल रहा है. इसके पहलेनक्सलियों का नेपाल के माओवादियो, लिट्टे से भी संबंध की चर्चा चली थी.संबंध किससे है यह मायने नहीं रखता क्योंकि नक्सलियों को छ तीसगढ़ और खासकर वनांचलों से ही इतनी आय हो रही है किउन्हेंकहीं झांकने की जरुरत नहीं है और न ही किसी से रिश्तेदारी निभाने की आवश्यकता है. सरकार जब तक आर्थिक नाकेबंदी नहीं करेगी तब तकनक्सलियोंकी जड़ें कमजोर होना मुश्किल हैघने जंगल और चप्पे-चप्पेपर पुलिस की मौजूदगी के बाद भी नक्सलियों को खाने -पीने का सामान, गोला बारुद और हथियार कहां से मिल रहा है .इसका भंडाफोड़ करना जरुरी है. निश्चित रुप से बड़े शहरों से नक्सलीतार जुड़े हुए हैं और रसद सप्लाई भी इन्ही शहरों से हो रही है. जब तक नक्सलप्रभावित इलाके को सील नहीं किया जाएगा और इस क्षे त्र के आमद-रफ्तपर पैनी नजर नहीं रखी जाएगी तब तक नक्सलियों को मदद मिलते रहेगा. यह कितने दुर्भाग्यकी बात है कि हम नक्सलियोंसे निपटने के लिए सैकड़ों जवान वन क्षेत्रं में तैनात करते हैं किन्तु उनके राशन पानी की समुचित व्यवस्था भी नहीं कर सकते. जिस जवान को मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेने मानसिक और शारीरिक दृष्टि से पुष्ट बनाने की जरुरत हैउन्हीं जवानों को यदि खाने के लाले पड़ जाए तो वह कैसे नक्सलियों का मुकाबला कर पाएगी. चि तलनारघटना के बाद घायल जवानों ने राशन की कमी का मामला उठाया था. उसके दो दिन बाद भेजे जा रहे राशन को भी नक्सलियों ने लूट लिया .कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नक्सलियों से मोर्चा ले रहे जवानों के समक्ष विकट स्थिति है. घटनाएं होने के बाद कांग्रेस जहां सरकार की नाकामी का राग अलापती है तो राज्य सरकार कें द्र के सिर पर सवार हो जाती है. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो राज्य सरकार को बर्खास्त कर राष्टृपति शासन लगाए जाने की वकालत की है. इस बात की क्या गारंटी है कि राष्टृपति शासन लगने के बाद नक्सली चुप बैठ जाएंगे. चूंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं है इसलिए उसे बर्खास्त कर दिया जाए. पूर्वमुख्यमंत्रीदिग्वीजय सिंह भी नक्सली मुद्दे पर अपने विवादास्पद बयान के कार ण सुर्खियों पर है. पहले उन्होंने अपने ही गृहमं त्री की आलोचना कर दी फिर माफी मांगकर मामला शांत कर लिया. अब दिग्गीराजा नक्सलियों को आतंकवादी मानने से इंकार कर रहे हैं. जिननक्सिलयों का कोई धर्म नहीं है और केवल बंदूक की भाषा बोल रहे हैं, और जो असहाय, गरीब आदिवासियों के साथ कर्तव्य के बोझ तले दबे जवानों की नृशंस हत्याकर रहे हैं. ऐसे सिरफिरों को आतंकवादी से भी खराब यदि कोई शब्दहो तो उससे संबोधित किया जाना चाहिए. बेहतर हो राजनीतिज्ञ नक्सलीमुद्दे पर राजनीति न करे क्योंकि चाहे दि िवजय सिंह का कार्यकाल हो चाहे अजीत जोगी या रमन सिंह का यह समस्या विरासत में मिली है. यह जरुर सच है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद नक्सली गतिविधियां तेजी से बढ़ी है. अब नक्सली बंद का खौफ वनांचलों में देखा जा सकता है.प्रमुख मार्गों को छोड़कर बस्तर के अंदरुनी सड़कों पर वाहनों के पहिए थम गये हैं. लोगों के आने जाने पर पाबंदी लग चुका है. इन क्षेत्रों में निवास करने वाले वनवासी किन परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहे हैं, इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी वारदात के बाद दिल्ली में गृहमंत्री और बाद में प्रधानमंत्रीके साथ मुख्यमंत्रीकी दो बड़ी बैठकें हो चुकी हैकिन्तुसरकार का कड़ा रुख अभी तक उभर कर सामने नहीं आया है. बड़ी कार्यवाही अथवानक्सलियोंके खिलाफ बनी योजना का सरकार और उनके नुमाइंदें ढिढोरा पीट देते हैं जिससे नक्सलियों को अपनी र णनीति बदलने का मौका मिल जाता है. न क्सलियों की खबर सरकार या पुलिस तक पहुंचाने वाले चुनिंदें लोग ही होंगे किन्तु सरकार या पुलिस की र णनीति नक्सलियों तक पहुंचाने वाले सैकड़ों होंगे. सरकार पूरे मामले में गोपनीयता बरते तो शायद बड़ी कार्यवाही को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं.यह बात सच है कि नक्सलियोके खिलाफ सरकार को लंबी लड़ाई लडऩी पडेगीकिन्तु लंबी लड़ाई की तैयारी में हमारा वर्तमान ही तहस-नहस न हो जाए इस बात को भी ध्यान रखने की जरुरत है.
छ तीसगढ़ की शांति पर लगा न सली हिंसा का ग्रह ा छ तीसगढ़ में न सली हिंसा का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. कल तक सिर्फ पुलिस के जवानों को निशाना बनाने वाले न सली अब नागरिकों को भी मौत की नींद सुलाने में परहेज नहीं कर रहे हैंै. सुकमा-दंतेवाड़ा मार्ग पर या ाी बस को उड़ाकर पुलिस जवान, एसपीओ सहित ग्रामी ाों की ह या कर न सलियों ने जता दिया है कि उनका कोई सि दांत नहीं है और वे केवल आंतक फैलाकर वनांचलों में अपना राज चलाना चाह रहे हैं. दरअसल 6 अप्रैल को चि तलनार के जंगल में 76 जवानों की ह या के बाद सरकार की सुस्त नीति और योजना तथा कार्यवाही में विलंब का ही फायदा उठाकर न सली लगातार वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. चि तलनार की ाटना के बाद बीजापुर मार्ग पर पुलिस वाहन उड़ाकर 8 जवानों को मारने के बाद अब या ाी बस पर निशाना साधा है और बड़ी वारदात को अंजाम देकर एक बार फिर पुलिस और सरकार को पीछे खदेडऩे में कामयाबी का झंडा गाड़ दिया है. 76 जवानों की ह या के बाद तो ऐसा कोहराम मचा था मानों सरकार अब न सली समस्या का खा मा कर ही दम लेगी कि तु समय बितने के साथ ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इतनी बड़ी ाटना के बाद न तो पुलिस का रवैया बदला और न ही शासन प्रशासन की तंद्रा ही टूटी. ाटना के बाद केवल निंदा और न सलियों के कोसने के अलावा कुछ भी नहीं बचा. ज्यादा हल्ला होने पर के द्रीय गृह मं ाी का व तव्य और कार्यवाही तेज करने संबंधी बयान ही आता है. कार्यवाही कहां होती है इसका कुछ पता नहीं चलता. दूसरी ओर न सली एक वारदात की सफलता के बाद दूसरी वारदात को अंजाम देने की र ानीति बनाने में जुट जाते हैं. न सली हिंसा के कार ा छ तीसगढ़ आज देश के सबसे ज्यादा अशांत क्षे ा की ो ाी मेें आ गया है. पिछले तीन माह के दौरान यहां न सलियों ने दो सौ से अधिक सिविलियन और जवानों को निशाना बनाया है. आतंकवाद और अलगाववाद के यु द से जूझ रहे ज मू-कश्मीर में भी इतनी ह याएं नहीं हुई है. आज देश का पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उडि़सा, म यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, छ तीसगढ़ और महाराष्टृ न सलवाद की चपेट में है कि तु सर्वाधिक वारदातें छ तीसगढ़ में होना गंभीर चिंता का विषय है. छ तीसगढ़ सरकार और सुरक्षा ऐजेसियां लगातार चूक रही है जिसका फायदा न सली उठा रहे हैं. यह सरकार और प्रदेश के लिए काफी कठिन दौर है. इसे आज भी हल्के से नहीं लिया जाना चाहिए. लगातार वारदातों ने पुलिस के खुफिया तं ा पर भी प्रश्न चि ह लगा दिया है. जब भी कोई बड़ी वारदातें होती है, उसके दूसरे दिन आईबी की रिपोर्ट आती है कि बस्तर के न सलियों का लश्कर से संबंध है और उ हें प्रशिक्ष ा और पैसा लश्कर से मिल रहा है. इसके पहले न सलियों का नेपाल के माओवादियो, लिट्टे से भी संबंध की चर्चा चली थी.संबंध किससे है यह मायने नहीं रखता योंकि न सलियों को छ तीसगढ़ और खासकर वनांचलों से ही इतनी आय हो रही है कि उ हें कहीं झांकने की जरुरत नहीं है और न ही किसी से रिश्तेदारी निभाने की आवश्यकता है. सरकार जब तक आर्थिक नाकेबंदी नहीं करेगी तब तक न सलियों की जड़ें कमजोर होना मुश्किल है. ाने जंगल और च पे -च पे पर पुलिस की मौजूदगी के बाद भी न सलियों को खाने -पीने का सामान, गोला बारुद और हथियार कहां से मिल रहा है .इसका भंडाफोड़ करना जरुरी है. निश्चित रुप से बड़े शहरों से न सली तार जुड़े हुए हैं और रसद स लाई भी इ ही शहरों से हो रही है. जब तक न सल प्रभावित इलाके को सील नहीं किया जाएगा और इस क्षे ा के आमद-र त पर पैनी नजर नहीं रखी जाएगी तब तक न सलियों को मदद मिलते रहेगा. यह कितने दुर्भा य की बात है कि हम न सलियों से निपटने के लिए सैकड़ों जवान वन क्षे ाों में तैनात करते हैं कि तु उनके राशन पानी की समुचित व्यवस्था भी नहीं कर सकते. जिस जवान को मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेने मानसिक और शारीरिक दृष्टि से पुष्ट बनाने की जरुरत है उ हीं जवानों को यदि खाने के लाले पड़ जाए तो वह कैसे न सलियों का मुकाबला कर पाएगी. चि तलनार ाटना के बाद ाायल जवानों ने राशन की कमी का मामला उठाया था. उसके दो दिन बाद भेजे जा रहे राशन को भी न सलियों ने लूट लिया .कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि न सलियों से मोर्चा ले रहे जवानों के समक्ष विकट स्थिति है. ाटनाएं होने के बाद कांग्रेस जहां सरकार की नाकामी का राग अलापती है तो राज्य सरकार के द्र के सिर पर सवार हो जाती है. पूर्व मु यमं ाी अजीत जोगी ने तो राज्य सरकार को बर्खास्त कर राष्टृपति शासन लगाए जाने की वकालत की है. इस बात की या गारंटी है कि राष्टृपति शासन लगने के बाद न सली चुप बैठ जाएंगे. चूंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं है इसलिए उसे बर्खास्त कर दिया जाए. पूर्व मु यमं ाी दि िवजय सिंह भी न सली मुद्दे पर अपने विवादास्पद बयान के कार ा सुर्खियों पर है. पहले उ होने अपने ही गृहमं ाी की आलोचना कर दी फिर माफी मांगकर मामला शांत कर लिया. अब दि गी राजा न सलियों को आतंकवादी मानने से इंकार कर रहे हैं. जिन न सलियों का कोई धर्म नहीं है और केवल बंदूक की भाषा बोल रहे हैं, और जो असहाय, गरीब आदिवासियों के साथ कर्तव्य के बोझ तले दबे जवानों की नृशंस ह या कर रहे हैं. ऐसे सिरफिरों को आतंकवादी से भी खराब यदि कोई श द हो तो उससे संबोधित किया जाना चाहिए. बेहतर हो राजनीति ा न सली मुद्दे पर राजनीति न करे योंकि चाहे दि िवजय सिंह का कार्यकाल हो चाहे अजीत जोगी या रमन सिंह का यह समस्या विरासत में मिली है. यह जरुर सच है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद न सली गतिविधियां तेजी से बढ़ी है. अब न सली बंद का खौफ वनांचलों में देखा जा सकता है.प्रमुख मार्गों को छोड़कर बस्तर के अंदरुनी सड़कों पर वाहनों के पहिए थम गये हैं. लोगों के आने जाने पर पाबंदी लग चुका है. इन क्षे ाों में निवास करने वाले वनवासी किन परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहे हैं, इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. प्रभावित क्षे ाों में बड़ी वारदात के बाद दिल्ली में गृहमं ाी और बाद में प्रधानमं ाी के साथ मु यमं ाी की दो बड़ी बैठकें हो चुकी है कि तु सरकार का कड़ा रुख अभी तक उभर कर सामने नहीं आया है. बड़ी कार्यवाही अथवा न सलियों के खिलाफ बनी योजना का सरकार और उनके नुमाइंदें ढिढोरा पीट देते हैं जिससे न सलियों को अपनी र ानीति बदलने का मौका मिल जाता है. न सलियों की खबर सरकार या पुलिस तक पहुंचाने वाले चुनिंदें लोग ही होंगे कि तु सरकार या पुलिस की र ानीति न सलियों तक पहुंचाने वाले सैकड़ों होंगे. सरकार पूरे मामले में गोपनीयता बरते तो शायद बड़ी कार्यवाही को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं.यह बात सच है कि न सलियों के खिलाफ सरकार को लंबी लड़ाई लडऩी पडेगी कि तु लंबी लड़ाई की तैयारी में हमारा वर्तमान ही तहस-नहस न हो जाए इस बात को भी यान रखने की जरुरत है.

Sunday, July 25, 2010

तस्मै श्री गुरुवे नम

कहते हैं कि दुनिया बदल रही है। भागदौड़ के इस जमाने में परिवार विघटित हो रहें हैं, समाज बट रहा है। संयुक्त परिवार की परंपरा पुराने जमाने की बात हो गई है। यह सब सच भी लगता है किन्तु भारत में आधुनिकता का जितना संचार हुआ है। उसके साथ परंपराएं भी पहले से अधिक मजबूत हुए हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु का विशेष महत्व है।बिना गुरु के ज्ञान के जीवन के किसी क्षेत्र के कठिन राहों को लांघ पाना संभव नहीं हैं। लोगों में यह भी चर्चा होती है कि समय बदलने के साथ ही गुरु का महत्व कम हो रहा है किन्तु इस बात में सचाई नहीं दिखती। मेरा मानना है कि पहले की अपेक्षा अब ज्यादा गुरु की पूजा हो रही है। आज के जमाने में आध्य़ाति्मक गुरुओं का बोलबाला है। कोई उसे विश्व गुरु बता रहा है तो कोई जगत गुरु। खैर जो भी हो गुरु तो गुरु है। यह बात अलग है कि कुछ गुरुओं के कुकृत्य से आज गुरु-शिष्य की परंपरा लांछित हो रही है। इस लांछन से गुरु का महत्व निशि्चत रुप से घटा है।
यह बात सच है कि आज गुरु की पूजा का भाव बढ़ा है, गुरुपूर्णिमा का पर्व अब उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा है। शैक्षणिक संस्थाओं के अलावा समाजसेवी संगठन और सभा समितियों में भी गुरु की पूजा होने लगी है।यह एक अच्छी शुरुआत है। वैसे देखा जाए तो आज भारत अपनी वैदिक संस्कृति और परंपरा तथा संस्कार के कारण विश्व गुरु माना जाता है। यह परंपरा हम आधुनिकता का कितना बड़ा भी लबादा ओढ़ लें लेकिन कायम तो रहना ही चाहिए। मैं धन्यवाद देना चाहूंगा उन धर्म गुरुओं को जिन्होंने गुरु-शिष्य की एक एसी परंपरा विकसित की है जिसके पीछे लोग दीवाने हो गये हैं। बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर महाराज, सुधांशु महाराज और आशाराम बापू उन आध्यात्म गुरु हैं जिनके पीछे आज लाखों की संख्या में शिष्यों की भीड़ खड़ी हैं। आज ही मथुरा के स्टेशन का एक दृश्य अखबारों में छपा है जिसमें गुरु पर्व मनाने के लिए सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर ट्रेन के छत पर बैठकर सफर कर रहे हैं। इससे साबित होता है कि गुरु के इस पर्व को लेकर लोगों में कितना उत्साह है। शिष्या की निष्ठा आज भी पराकाष्ठा की हदें पार कर रही है किन्तु क्या गुरु अपने शिष्यों के साथ सही व्यवहार कर रहा है। महिला हाकी टीम के सदस्यों के साथ यौन शोषण का मामला, कर्णम मलेष्वरी का आरोप गुरु-शिष्य के संबंधों में कड़वाहट घोलने के लिए काफी है।
छत्तीसगढ़ी नाटक चरणदास चोर में भी गुरु-शिष्य पर एक रोचक तथ्य दिखाया गया है। चरणदास चोर को जब यह पता चलता है कि बिना गुरु के इस जीवन का कल्याण नहीं हो सकता तब वे गुरु की खोज में निकल पड़ते हैं। एक जगह उन्हें एक साधू दिखाई पड़ता है जिसे वे गुरु बनाने की इच्छा व्यक्त करता है लेकिन गुरु बनने के पहले वह गुरु और शिष्य के कार्यों की जानकारी चाहता है। साधू बताते हैं कि शिष्य को सदैव अपने गुरु की सेवा ही करनी पड़ती है, यह सुनने के बाद चरणदास शिष्य बनने का विचार त्याग कर सीधे गुरु बनने की इच्छा व्यक्त करता हैं। कहने का मतलब यह है कि आज भी कई क्षेत्रों में यही हो रहा है। गुरु गुड़ बन गया और चेला शक्कर बन गया। खैर जो भी हो भले ही हम एक दिन गुरु पर्व मना कर अपने गुरु को याद कर अपनी परंपरा को जीवित रखने में भूमिका तो निभा रहे हैं। मैं अपने उन गुरुओं का चरण वंदन करता हूं जिनके सानिध्य से मैं आज कुछ करने के लायक बन पाया हूं।

Sunday, July 18, 2010

कैसे गढ़े जिंदगी

राज्य और केन्द सरकार शिक्षा व्यवस्था के लेकर काफी गंभीर नजर आ रही है इसीलिए शिक्षा अधिकार अधिनियंम सहित अन्य शिकंजा कसने की कवायद कर रही है। कोई बच्चा स्कूल जाने से न चूके राज्य सरकार उत्सव मना रही है और स्कूल जाबो पढ़े बर जिनगी ला गढे बर जैसे नारे दे रही है किन्तु आज क्या सचमुच सरकारी स्कूलों में बच्चों को जिंदगी संवर रही है। सरकारी स्कूल में वही लोग पहुंच रहे हैं जो सबसे गरीब हैं। जिनके पास दो जून की रोटी की जुगत है और थोड़ा बहुत भी पैसा है तो उसके बच्चे भी ठीकठाक स्कूल में पढ़ रहे हैं। सरकारी स्कूल केवल और केवल गरीबों के लिए है। कहते हैं कि गरीबों का कोई नहीं होता। उसी तरह इन सरकारी स्कूलों का कोई माईबाप नहीं है। हजारों लाखों की जीविका इन स्कूलों से चल रही है किन्तु क्या हर शख्स अपना फर्ज पूरी इमानदारी से निभा रहा है, बिल्कुल ही नहीं। आज सरकारी स्कूली के हालात देखने से ही अंदाजा हो जाएगा कि गरीबों के इस ज्ञानमंदिर में न तो भगवान है और न ही पुजारी। सरकारी स्कूलों की हालत उस मंदिर की तरह है जो बनकर तैयार तो हो गया है किन्तु न भगवान विराजमान है और न ही पूजा हो रही है। शिक्षाधिकारी, कलेक्टर, मंत्री, जनभागीदारी समिति सहित न जाने कितने नियंत्रण इन स्कूलों पर है किन्तु बरसों से इसकी व्यवस्था नहीं सुधर पायी है।
बच्चों को स्वस्थ रखने और पढ़ाई के लिए उत्साहित करने के लिए मध्यान्ह भोजन व्यवस्था लागू की गई। पहले भोजन बनाने का कार्य स्कूलों में ही होता था किन्तु बाद में सारी व्यवस्था ठेकेदारों को सौंप दिया गया, अब जिस कार्य की जिम्मेदारी ठेकेदारों के हाथ में हो वहां कमीशनखोरी का खेल तो खेला जाना स्वाभाविक ही है। पूरे शहर का खाना एक जगह ही बनता है और जेल के कैदियों को परोसे जाने वाले खाने से भी बदतर खाना बच्चों को परोसा जाता है। मीनू का पालन होना तो सपना है। शहर के स्कूलों में चांवल, दाल और सब्जी ही दिखता है। इस खाना को खाकर बच्चें अपना कितना मानसिक और शारीरिक विकास कर पाएंगे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बरसात का मौसम स्कूल का मैदान, भिनभिनाती मक्खियों के बीच धूल और किचड़ में बच्चे मधायन्ह भोजन करते हैं। किसी शिक्षक को इतनी फुरसत नहीं है कि बच्चों के भोजन करने की व्यवस्था ठीक कर सके। पूरी व्यवस्था को सत्तारुढ़ भाजपा के नेताओं ने हाई जैक कर लिया है। दुर्ग छग के मध्यान्ह भोजन सप्लाई की जिम्मेदारी भाजपा नेत्रियों की गठित समिति की है जो बच्चों का निवाला छिनने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं।
जहां तक स्कूलों की स्थिति और हालत की बात है तो अधिकांश स्कूल भवन जर्जर हालत में है। कमरों की कमी है। एक-एक कमरे में ६०-७० बच्चों को बैठना पड़ता है। स्कूलों में पर्याप्त स्टाफ की व्यवस्था भी नहीं। शिक्षकों की ड्यूटी पढाने के अलावा अन्य कार्य में लगा दिया जाता है जिससे बच्चों की पढ़ाई ठप पड़ जाती है। कई स्कूलों में तो शिक्षक ही पढ़ाई में रुचि नहीं दिखाते। उनकी ऱुचि केवल नौकरी पकाने और तनख्वाह पाने तक सीमित होकर रह गया है। मैं एक स्कूल की एक एेसी शिक्षिका को जानता हू जो एक स्थानीय नेता की पत्नी है। सुबह के स्कूल में उसे ८ बजे उपसिथति देने और १०.३० बजे छुट्टी देने के स्पष्ट आदेश मंत्री का लिखित में स्कूल में है। अब इस व्यवस्था से क्या गरीबों के बच्चे होनहार बनकर अपना नाम रौशन कर पाएंगे।
हर शहर की आधी से अधिक आबादी गरीबों की है, सरकारी स्कूलों की संख्या भी काफी है किन्तु व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है। न बच्चे ठीक से पढ़ रहे हैं और न ही उन्हें सही भोजन ही दिया जा रहा है। सरकार लुभावने नारे देकर बच्चों का आदर सत्कार तो कर सकती हैं किन्तु जब तक व्यवस्था पर कड़ाई का शिकंजा नहीं कसा जाएगा तब तक गरीबों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम का सही लाभ नहीं मिल पाएगा। शिक्षकों की रुचि भी पढ़ाने में कम नेतागिरी में ज्यादा है। उन्हें केवल यही चिंता सताती है कि वेतन समय पर मिले, वेतनमान भी लगातार बढता ही रहे। बदले में वे क्या कर रहे हैं, यह न वह स्वयं सोच रहा है और न ही कोई देखने वाला है.

Sunday, May 9, 2010

मत चूको चौहान

बस्तर में नक्सली हिंसा का दौर जारी है। तालेड़मटेला में ७६ जवानों का मौत कारित करने वालों ने कल फिर बीजापुर की घाटी में विस्फोट कर पुलिस वाहन को उड़ा दिया है और ७ पुलिस कर्मी फिर से नक्सली हिंसा का शिकार हो गये हैं। सरकार के समक्ष अब केवल एक ही विकल्प बचा है। नक्लसी हिंसा का कारगर जवाब देने का अब समय आ गया है। सरकार अब इस मामले को समाप्त करने के लिए केवल सेना की मदद ले। सरकार को सेना की मदद लेने में किंचित भी परहेज नहीं करना चाहिए। जब भारत के सेना लंका जाकर वहां लिट्टे के खिलाफ लोहा ले सकती है तो अपने ही देश में बंदूक की नोंक पर सत्ता हासिल करने का सपना देखने वालों के मंसूबों का ध्वस्त करना अब जरुरी हो गया है।तथाकथित समाजसेवियों और बुध्दिजीवीयो की शांति यात्रा का विरोध के बाद दूसरे दिन ही इतनी बड़ी बारदात ने यह साबित कर दिया है कि शांति यात्रा का उद्देश्य शांति की बहाली नहीं बल्कि सरकार को चेताना तो नहीं है। वैसे केन्दीय गृह मंत्री चिदंबरम ने स्पष्ट कर दिया है कि नक्सलियों से हमदर्दी रखने वाले बख्शे नहीं जाएगें। सरकार को इन संगठन और मदद कर्ताओं पर बी नकेल कसने की जुरुरत है ताकि इन आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके।
लगातार नक्सली वारदात के बाद अब सरकार यह फैसला करने में जरा भी देरी न करे कि इनके खात्मे के लिए सेना की मदद ली जाए। राज्य के गृह मंत्री ननकीराम कवंर ने तो स्पष्ट कह ही दिया है कि अब सेना की मदद ली जानी चाहिए। ननकीराम का निर्णय स्वागतयोग्य है, क्योंकि आखिर कब तक बेकसूर मारे जाते रहेंगे। सरकार के मुखिया रमन सिंह को तत्काल फैसला कर अपनी भावना से केन्द सरकार को अवगत करा देना चाहिए। मुख्यमंत्री को चूक नहीं करना चाहिए क्योंकि मामले में जितनी देरी होगी उतने लोग बलि का बकरा बनते जाएगे और मौत की वारदातों का आकड़ा बढ़ता ही जाएगा.

Thursday, May 6, 2010

कैसी शांति, कैसा न्याय

देश के वैज्ञानिक, शिक्षा शास्त्रियों और समाज सेवियों का एक समूह नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन गीनहंट को उचित नहीं मानता। शांति न्याय यात्रा पर आए यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष यशपाल, गुजरात विद्यापीठ के चांसलर नारायण देसाई, फिशर पीपुल के सलाहकार थामस कोचरी, बंधुआ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष स्वामी अग्निवेश, सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष राधा भट्ट शांति न्याय यात्रा पर रायपुर पहुंचे हैं। वे छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि बंदूक की नोक पर समस्या का समाधान नहीं हो सकता। सरकार यदि नक्सलियों का सामना करने के लिए बंदूक का सहारा ले तो इन्हें इस तरह के जुमले याद क्यों आते हैं यह आश्चर्य का विषय है। नक्सली लगातार २० वर्षो से आदिवासी इलाकों में मौत की होली खेल रहा है। हर बार कोई न कोई निरीह व्यक्ति पर निशाना साधा जाता है। चाहे वह पुलिस के जवान हो या गांव का आदिवासी युवक कभी मुखबीर की आड़ में तो कभी एसपोओ के नाम पर मौत का घाट उतारा जा रहा है। फिर भी तथाकथित इन समाजसेवियों को सरकार की नाकामी और कमजोरी ही क्यों दिखती है। यह समझ से परे है। सचमुच यदि उनके दिलोदिमाग में नक्सली हिंसा को समाप्त करने की है तो पहले नक्सली क्षेत्र में जाकर इस समस्या से पनपी बेबसी का अध्ययन करें। उन अनाथ बच्चों को देखे जिनके मां-बाप, भाई-बहन नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। उन शिविरों में जाएं जहां नक्सली आतंक का खौफ हर विस्थापित के चेहरे में पढ़ी जा सकती है। आज बस्तर विश्व के मानचित्र पर केवल नक्सली हिंसा के नाम पर जाना जाने लगा है जबकि अस्सी के दशक में यही बस्तर अपनी घोटुल संस्कृति की वजह पूरी दुनिया में अबूज पहेली बना हुआ था। अबूझमाड़ का वह इलाका जहां बिना अनुमति जाने पर पाबंदी थी आज उस बस्तर की छवि धूमिल हो चुकी है। आज बस्तर को केवल नक्सली हिंसा के नाम पर ही जाना जाता है। आज यह अनुमान लगा पाना मुश्किल जान पड़ता है कभी यह इलाका शांत रहा होगा। जहां तक मुझे याद है हम १९८४-८५ में स्वछंद हो कर देर रात्रि को भी दरभा घाटी में जंगली जानवर देखने का मोह लेकर चक्कर मारने से भी नहीं चूकते थे किन्तु आज शाम होते ही उस मार्ग पर चलने का साहस ही शायद कोई जुटा पाए। हर गांव में आिदवासियों के सीधे पन को देखा जा सकता था किन्तु अब वही बस्तर झुलस रहा है। नक्सलवाद का घिनौना चेहरा आतंकवाद को भी पीछे छोड़ता नजर आ रहा है। बस्तर वासियों की आंखें सूख चुकी है। उनके समक्ष एक तरफ कुंआ तो दूसरे तरफ खाई है। दो पाटन के बीच पीस रहे लोगों का दुख दर्द बांटने वाला आज कोई नहीं है। यदि इन समाजसेवियों के बीच कोई अपनी बात कहता है तो यह कहा जाता है कि सरकार के नुमाइंदे हैं। मैं नक्सली मुद्दे पर सरकार को कार्यो का पक्षधर नहीं हूं किन्तु क्या सिर्फ रमन सरकार ही इस मुद्दो पर दोषी है। क्या हम बुध्दिजीवीयों ने भी इस मामले के साथ न्याय किया है। किसी न किसी तरीके से छद्म मानसिकता के लोगों ने इस मामले को हवा दी है और अब सारा दोष सरकार बर मढ़ा जा रहा है। क्या पर नागरिक का यह फर्ज नहीं बनता कि नक्सली हिंसा में वे सरकार का साथ दे और चंद मुट्ठिभर लोगों को सबक सिखा दें और बता दें कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान संभव ही नहीं है। दूसरी तरफ इन तत्वों को बख्शे जाने की भी जरुरत नहीं है क्योकि यदि इन्हें बख्श दिया गया तो उन हजारों हत्याओं का पाप सरकार के सिर पर ही चढ़ेगा.

Monday, May 3, 2010

नक्सली हिंसा पर सरकार गंभीर नहीं

गत दिनों दंतेवाड़ा के चित्तलनार क्षेत्र में नक्सली हिंसा से ७६ जवानों की मौत के बाद जिस तरह से शासन तंत्र हरकत में आया था, उससे लगने लगा था मानों सरकार अब नक्सलियों का सफाया कर ही दम लेगी किन्तु समय बितने के साथ उन ७६ जवानों का बलिदान वृसि्मत किया जाने लगा है। सरकार एक बार फिर बैकफुट में चली गई है और नक्सली फिर बड़ीवारदात की तैयारी में जुट गये हैं। लगभग महीने भर का समय गुजर चुका है। न तो केन्दऱ सरकार और न ही राज्य सरकार यह निर्णय कर पायी है कि आखिर इस हिंसा का कैसे जबाव दिया जाए। हवाई हमले का निर्णय भी अब तक नहीं हो पाया है। जहां तक नक्सली हिंसा का जवाब देने का सवाल है। गर्मी का मौसम सबसे अनुकुल हो सकता है। क्योकि गर्मी में जंगल के पेड़ सूख चुके होते हैं और रास्ता आसान हो जाता है। सूखे पत्तों पर हल्की सी आवाज भी सुनाई पड़ जाती है। लेकिन सरकार और पुलिस अब तक चित्तलनार घटना का जवाब देने तैयार नहीं है। मई की शुरुआत हो चुकी है। जून के पहले सप्ताह में ही बस्तर में बारिश की बौछार पड़ने लगेगी। एक बार बारिश हुई तो जंगल में किसी आपरेशन को अंजाम नहीं दिया जा सकता।
आज नक्सल क्षेत्र दंतेवाड़ा के हालत की चर्चा करें तो पता चल जाएगा कि हालात काफी भयावह है। मेरे एक मित्र सरकारी सेवक के रुप में एक वर्ष दंतेवाड़ा में बिता कर लौटा है। वहां के हालात को देखकर उन्होंने तबादला नहीं होने की सूरत में अनिर्वाय सेवानिवृति ले ली है। उनका कहना है कि दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय होने के बाद भी पूरी तरह से दहशत के साये में सांसें ले रहा है। शाम ४ बजे से ही पूरा बाजार सूना हो जाता है। सकड़ें विरान हो जाती है।लोग किसी अज्ञात भय की आशंका से अपने घरों में दुबक जाते हैं, बाजार में आपको सब्जी भी नसीब नहीं होगा क्योंकि भारी तादात में उपलब्ध पुलिस के जवान सारी सब्जी खरीद कर ले जाते हैं। वहां रहने वालों के लिए कुछ बचता ही नहीं है। यह हालत रोज की है। नौकरी करने के लिए दंतेवाड़ा पहुंचने वाला आदमी अब कैसे अपनी दिनचर्या चलाएगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
मेरा मानना है कि सरकार सचमुच नक्सलियों का सफाया करना चाहती है तो पुलिस के तमाम बड़े अफसरों को बस्तर में ही अपना मुख्यालय बनाकर कैंप करना होगा। हर छोटे बड़े आपरेशन का संचालन जब तक बड़े पुलिस अधिकारी नहीं करेंगे तब तक जवानों का हौसला नहीं बढ़ाया जा सकता। जवान वही गलती बार-बार दुहराकर मौत का शिकार हो रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। दरअसल पुलिस का अभियान दिशाविहीन है। कोई भी आला अधिकारी फिल्ड में जाकर नक्सलियों से लोहा नहीं लेना चाहता। चूंकि पुलिस का कोई कप्तान नहीं है इसलिए अनमने और आधे मन से अभियान की शुरुआत होती है जिसका नतीजा पुलिस के खिलाफ ही होता है। नक्सली अभियान के आईजी स्तर के अधिकारी शहरों में रहकर नक्सलियों के खिलाफ अभियान का सूत्रधार बने हुए हैं जबकि होना यह चाहिए कि सभी वरिष्ठ अधिकारी, यहां तक डीजीपी विश्वरंजन तक को लगातार नक्सल पीडि़त क्षेत्र में ही रहकर पूरे अभियान की मानिटरिंग करनी चाहिए। इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि दिशाहीन पुलिस को कार्य करने के लिए मार्गदर्शन हासिल होगा। पुलिस के बड़े अधिकारी के अलावा गृहमंत्री और गृहसचिव तक को नक्सल विरोधी अभियान का नेतृत्व करने फिल्ड में जाना चाहिए। मुख्यमंत्री रमन सिंह का एक बयान आया है कि पुलिस फोर्स गांववालों का दिल जीते। अभाव और तनाव की जिंदगी जी रहे पुलिस के जवान किस तरह से गांववालों से बेहतर संबंध बनाएगें। बलि्क होना यह चाहिए कि नेता और मंत्रीइस कार्य की शुरुआत स्वयं क्षेत्र में जाकर करें।
पूरे छत्तीसगढ़ में सुराज अभियान चला केवल नक्सल पीडि़त क्षेत्रों को छोड़कर क्या सरकार भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच यह अभियान उन क्षेत्रों में चलाकर आदिवासियों का दिल जीत सकती थी किन्तु सरकार की ओर से कोई उपऱकम ही नहीं किया गया। सुराज के बहाने सरकार सब जगह पहुंच सकती थी किन्तु सरकार की ओर से एेसा कोई कार्य ही नहीं किया गया। नक्सल विरोधी अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार को आदिवासियों का दिल जीतना होगा। और यह तभी संभव है जब सरकार के नुमाइंदे आदिवासियों के बीच पहुंचे और उनके दुख दर्द में सहभागी बने। आज गांव वाले ही नक्सलियों के सबसे बड़े मददगार बने हुए हैं।इसके साथ ही शहरी इलाकों से जो रसद की आपूर्ति नक्सलियों को हो रही है उस पर अंकुश लगाना जरुरी है। सरकार को नक्सली क्षेत्र को सभी दिशाओं से सील करना होगा। उस क्षेत्र में पहुंचने वाले हर वाहनों की नियमित जांच कर रसद आपूर्ति पर बंदीश लगाई जा सकती है। नक्सलियों को खाने पीने का सामान रायपुर, दुर्ग, भिलाई जैसे शहरों से पहुंच रहा है। सरकार जब तक आर्थिक नाकेबंदी नहीं करेगी तब तक नक्सली हावी ही रहेंगे।
फिलहाल सरकार का रवैया से नहीं लगता कि नकसली हिंसा का कारगर जवाब सरकार के पास है। ७६ जवानो की मौत भूला दी गई है। आगे सरकार फिर किसी बड़ी हिंसा का इंतजार कर रही है जान पड़ता है। रमन सिंह और दिग्वीजय सिंह आज नक्सली मुद्दे पर तू-तू, मैं-मैं कर रहे हैं। बेहतर होता दोनों नेता एक साथ नक्सल पीडि़त क्षेत्र में जाते और सरकार से कहां चुक हुई इसका पता लगाकर उसे दूर करने का संयुक्त पहल करते। दरअसल राजनैतिक इच्छाशक्ित में कमी की वजह से यह समस्या आज विकराल रुप ले चुकी है। दिग्वीजय सिंह के कार्यकाल में ही यदि इस समस्या पर गंभीरता दिखाई गई होती तो शायद यह समस्या पांव पसारने के पहले ही दम तोड़ चुकी होती किन्तु राजनेता हर समस्या पर अपनी रोटी सेंकने से बाज नहीं आते। नक्सली मामला भी कुछ इसी तरह का है जिस पर सरकारें कभी गंभीर नहीं रही। खामियाजा आम नागरिक और पुलिस के जवानों को भुगतना पड़ रहा है। सरकार के लिए अभी भी अवसर है कि किसी बड़ी घटना होने के पुर्व ही बड़ी कार्यवाही कर नक्सलियों का कमर तोड़ दे ताकि फिर सिर उठाने का ताव उनमें न रहे.

Tuesday, March 30, 2010

नगपुरा महो सव आज से

दुर्ग. तीर्थकर परमा मा ाी पाश्र्वनाथ प्रभु की साधना ाी उवस गहरं पाश्र्व तीर्थ में 31 मार्च से पर परागत रूप से आयोजित प्रतिवर्षानुसार नगपुरा महो सव की व्यापक तैयारियां र्पू ा हो चुकी है. महो सव में मु बई, कलक ाा, मद्रास, अहमदाबाद, पूना आदि महानगरों से जप तप मंगल आराधना के लिए ाद्धालुओं का आगमन हो रहा है. असं य ाद्धालुओं की गहरी आस्था से ओतप्रोत इस महो सव में ाान तीर्थ कोबा के सर्जक ल ध प्रतिष्ठï प्र ाा पुरूष राष्टï्रसंत आचार्यदेव ाी पदमसागर सूरीश्वर आदि मुनि भगवंत 31 मार्च को प्रात: तीर्थ आ रहे हैं. आचार्य ाी के प्रथम तीर्थ पदार्प ा पर तीर्थ प्रबंधन के साथ ही अंचल के जनप्रतिनिधि एंव विद्यालय परिवार द्वारा नगपुरा में भव्य सामैया के साथ अगुवानी किया जावेगा. 31 मार्च को आचार्य की नि ाा में दोपहर अ_ïारह अभिषेक महापूजन की संरचना ाीमती साधनादेवी विजय कुमार दुगड़ रायपुर की ओर से किया जाएगा. रा िा 8 नगपुरा का उद ााटन अतिथियों की समृद्ध उपस्थिति में होगा. उद ााटन स ा के सात ही पदुमलाल पुन्नालाल ब शी हायर सेके डरी स्कूल, जीएमजी हायर सेके डरी स्कूल, सर्वेश्वरदास हायर सेके डरी स्कूल, गाय ाी हायर सेके डरी स्कूल राजनांदगांव, शाउमा शाला रसमड़ा, सीनियर सेके डरी स्कूल से टर 7 भिलाई, निवेदिता हायर सेके डरी स्कूल चरोदा, शाररूप्रसाद नेशनल हायर सेके डरी स्कूल दुर्ग, सन साइन हायर सेके डरी स्कूल, वर्धमान गुरूकुल नगपुरा, जवाहर नवोदय विद्यालय बोरई के विद्यार्थियों द्वारा राष्टï्रभक्ति, लोकगीत एवं लोक नृ य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा. प्रसिद्ध हास्य कलाकार प पू चंद्राकर एवं ोवर यादव प्रहसन के मा यम से जनमानस को स्वास् य जन संरक्ष ा एवं पर्यावर ा के प्रति जागृत करेंगे. रा िा में ही राकेश तिवारी रायपुर संचालित छ ाीसगढ़ी ड्रामा राजा फोकलवा की प्रस्तुति होगी.नगपुरा महो सव के अंतर्गत 1 अप्रैल को दोपहर से ाी नाकोड़ा भैरव महापूजन की संरचना लाभार्थी हुलासमल चंदनमल मोदी परिवार की ओर से किया जाएगा. जिसमें 108 ाद्धालु पूजा के वस् ा में मु य लाभार्थी के साथ ाी नाकोड़ा भैरव यं ा की पूजा में भाग लेंगे. दोपहर 2.30 बजे से ग्रामी ाों का आंचलिक कार्यक्रम तथा रा िा 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत अंधकार लोक संगीत समिति साजा, सुनील बंसोड़ एवं साथी राजनांदगांव नारदराम महोलिया ग्राम कांचरी के निर्देशन में लोक कला मंच पुरखा के थाती की प्रस्तुति होगी. इसी दिन चिमन साहू, रामेश्वर निर्मल हास्य प्रहसन के मा यम से धार्मिक सदभाव एवं राष्टï्रीयता का संदेश देंगे. 2 अप्रैल को ाी 108 पाश्र्वनाथ महापूजन सजोड़े शा. उमेदमल मूलचंद पोरवाल खापोली वालों की ओर से आयोजित है. दोपहर 2.30 बजे से योग की विभिन्न आसनों की संगीतमय आकर्षक प्रस्तुति रा य स्तरीय योगासन प्रतियोगिता आयोजित है. रा िा 8 बजे से सांस्कृतिक सं या अंतर्गत छ ाीसगढ़ लोक सांस्कृतिक सं या लोकरंग अर्जु दा की प्रस्तुति संचालक दीपक चंद्राकर के निर्देशन में होगा. इसी अंतराल में सुप्रसिद्ध हास्य कलाकार शिवकुमार दीपक एवं हेमलाल सेन द्वारा राष्टï्रपिता महा मा गांधी पर आधारित प्रेरक संदेश से जनमानस लाभा िवत होंगे. आचार्य की पावन नि ाा में 3 अप्रैल को प्रात: 9 बजे से तीर्थ परिसर में निर्मित ाी महावीर प्राकृतिक एवं योग वि ाान चिकि सा महाविद्यालय भवन का उद ााटन उ सव प्रारंभ होगा. उद ााटन स ा के बाद नगपुरा महो सव मंच से आचार्य जनमानस को प्रवचन के मा यम से धर्मलाभ प्रदान करेंगे. पर परागत रूप से प्रतिवर्षानुसार इस दिन मां भगवती देवी पदमावती प्रसादी (भंडारा) दोपहर 12.30 बजे से आयोजित है. रा िा में 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत जय मां सरस्वती रामधुनी पार्टी धामनसरा तथा भूपे द्र साहू संचालित सांस्कृतिक संस्था रंग सरोवर बारूका गरियाबंद की प्रस्तुति होगी. हास्य कलाकार सुदेश यादव एवं संतोष यादव अपने कला के मा यम से जनमानस को प्रेरित करेंगे. पांच दिवसीय नगपुरा महो सव में जनमानस मड़ई मेला हाट बाजार के साथ मीनाबाजार का आनंद उठाएंगे. इस वर्ष महो सव स्थल पर लोक मड़ई के संचालक दलेश्वर साहू के साथ ही कुलेश्वर चक्रधारी, कृष् ाा सोनी, हेमंत पटेल, हेमंत चक्रधारी, अनिरूद्ध चौधरी आदि कलाकारों द्वारा विभिन्न विधाओं पर आधारित कार्यक्रम मंच एवं स्थल सजावट जनमानस को आकर्षित करेंगे.

Sunday, March 28, 2010

मीनाकुमारी की शायरी

फिल्म जगत में मीनाकुमारी ने दो दशकों से अधिक समय तक दर्शकों के दिलों में छायी रही। वह न केवल उच्चकोटि की तारिका थी बलिक एक शायर भी थी। अपने दर्द, ख्वाबों की तस्वीर और गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम लोगों को मालूम है।उनकी वसीयत के मुताबिक फिल्म लेखक गुलजार को मीनाकुमारी की २५० निजी डायरियां मिली। उन्हीं में लिखी नज्मों, गजलों, शेरों के आधार पर गुलजार ने मीनाकुमारी की शायरी का एकमात्र संकलन तैयार किया है। मीनाकुमारी की शायरी का कुछ अंश यहां इसलिए दिया जा रहा है ताकि जाने एक उम्दा कलाकार के दिल में कितनी पीड़ा और दर्द छिपा हुआ था।
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली।
जिसका जितना आंचल था,
उतनी ही सौगात मिली।
जब चाहा दिल को समझें,
हंसने की आवाज सुनी।
जैसे कोई कहता हो, लो
फिर तुमको अब मात मिली।
बातें कैसी, घातें क्या।
चलते रहना आठ पहर।
दिल सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली॥
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चांद तन्हा है, आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां-कहां तन्हा।
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा।
जिन्दगी क्या इसी को कहते हैं।
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा।
हमसफर कोई मिल गया जो कहीं।
दोनों चलते रहे यहां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा।
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मसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है,
न जाने कौन-सी उम्मीदों पे दिल ठहरा है।
तेरी आंखों में झलकते हुए इस गम की कसम
ए दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा है।
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प्यार एक ख्वाब था
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वक्त ने छीन लिया हौसला-ए-जब्ते सितम
अब तो हादिसा-ए-गम पे तड़प उठता है दिल
हर नए जख्म पे अब रुह बिलख उठती है
होंठ अगर हंस भी पड़े आंख छलक उठती है।
जिंदगी एक बिखरता हुआ दर्दाना है
एसा लगता है कि अब खत्म पर अफसाना है।
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दिन गुजरता नजर नहीं आता
रात काटे सेभी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उमऱ बांटे से भी नहीं बटती
अकेलेपन के अंधेरे में दूर-दूर तलक
यह एक खौफ जी पे धुआं बनके छाया है
फिसल के आंख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक-पलक ने जिस राह से उठाया है।
शाम का यह उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख बढ़ता जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो कुश है कि जलता जाता है
तेरी आवाज में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आंखों के तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आगोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है।
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गुलजार दावारा संपादित हिन्दी पाकेट बुक्स से पऱकाशित मीनाकुमारी की शायरी का कुछ अंश यहां दिया गया है। कितना अंतर है कल और आज में उस जमाने के कलाकार न केवल अच्छे अदाकारा थे बलिक उनके दिल में भी कितना दर्द छुपा हुआ था जो शायरी के रुप में सामने आ गया है।
------मीनाकुमारी की शायरी से साभार--------

Friday, March 12, 2010

डॉ. बलदाऊ शर्मा का खंड काव्य

दुर्ग छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरा पर पले-बढ़े सुविख्यात शिक्षाविद् राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत पं। जामवंत शर्मा के ज्येष्ठ सुपुत्र डॉ। बलदाऊ शर्मा ने सूतपुत्र महाकाव्य की रचना के बाद छत्तीसगढ़ राज्य को पुण्य श्लोक गुरू गोविन्द सिंह के अमल धवल चरित्र को खंडकाव्य के माध्यम से उजागर करने का कार्य किया है।
खंडकाव्य की परम्परा के अनुसार पांच सर्गों में एक ही छंद में निबध्द यह कृति अंचल के समाजसेवी हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ। एस.एस.ढिल्लन को समर्पित की गयी है।अपने भतीजे स्व. अंकित शर्मा की स्मृति में लिखा गया यह खंडकाव्य नई पीढ़ी को यह आभास कराने में सर्वथा समर्थ है कि गुरू गोविन्द सिंह का अलौकिक चरित्र , अगाध देशभकि्त और धर्म के पऱति निष्ठा, पऱभृति सदगुणों ने उनको देश का महानायक बना दिया। देश और धर्म के लिए अपने चार-चार पुत्रों की शहादत देने वाले गुरू गोविन्द सिंह का विराट व्यकि्त्व अपनी उपमा आप ही है।इस खंड काव्य के उस पऱसंग को पढ़ते समय रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब गुरू तेगबहादुर कश्मीरी पंडितों की व्यथा को सुनकर दऱवित हो जाते हैं और उनका मुखमंडल दुख से कुम्हला जाता है। उसी समय सात बरस का गोविन्द आकर उनसे दुख का कारण पूछता है और जब पिता गुरू तेगबहादुर कहते हैं कि बेटा इस समय देश किसी महात्मा की बलि चाहता है तब गोविन्द कहते हैं कि हे पिता वर्तमान में आपसे बड़ा महात्मा अन्य कौन है। पिता को शहादत का पाठ पढ़ाने वाला उसका महान पुत्र के अनिर्वचनीय चरित्र का उदघाटन डॉ. शर्मा ने बड़े ही सुंदर ढंग से किया है।
डॉ. शर्मा की यह कृति वैदेही पऱकाशन साकेत धाम अर्जुन्दा में मुदित होने को तैयार है। कृति की पूर्णता पर अनेक मित्रों ने बधाइयां भेजी है, जिनमें गुलबीर सिंह भाटिया, डॉ। सोधी. आर.ए.शर्मा, कैलाश शर्मा, जर्नादन शर्मा,के।के।शर्मा, सहित भारी संख्या में लोग शामिल हैं.

Thursday, March 11, 2010

महिला आरक्षण का लाभ किसे

महिला आरक्षण विधेयक राज्य सभा में पास हो गया है, और लोकसभा से हरि झंडी का इंतजार है। इस विधेयक को राज्य सभा में पारित करवाने के लिए सरकार को जबरदस्त मशक्कत करनी पड़ी है। विधेयक का न केवल यादवी विरोध हुआ बलि्क विधेयक को फाड़ कर हवा में भी उछाल दिया गया। चाहे जो भी हो विधेयक आखिर पास हो ही गया किन्तु विधेयक की सार्थकता तभी साबित होगी जब इसका लाभ गैरराजनीतिक महिलाओं को मिले। वैसे भी भारतीय राजनीति में अच्छे परिवार की महिलाएं नहीं आना चाहती। बड़े-बड़े दावे करने वाली राजनैतिक दल क्या एक गांव की साधारण महिला को लोकसभा या विधानसभा में भेजने का मन बना पाएगी। विधेयक की आड़ में जब भी टिकट बटेगी तब वही लोग बाजी मारने में कामयाब होंगे जो आज राजनीति में भागीदार है। किसी विधायक, सांसद या फिर किसी ओहदेदार नेता के परिवार की महिलाएं ही आगे आएगी। किसी बुधियारिन या किसी मनटोरा कभी सांसद विधायक नहीं बन पाएगी। फिर विधेयक की औचित्य पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है।
इमानदार राजनैतिक दल विधेयक के बाद यदि महिलाओं की नई टीम तैयार कर और उन्हें आगे आने का अवसर दे तो शायद कुछ राहत मिले। लेकिन जिस तरह की परिपाटी भारतीय राजनीति में चल रही है। सभी दलों में परिवार वाद का बोलबाला है,नेताओं के रिश्तेदार ही आगे बढते हैं। इस परंपरा पर अंकुश लगाने से ही सर्व समाज की महिलाँए आगे आएंगी और राजनीति में शुचिता का संचार होगा। आरक्षण के आड़ में यदि फिर वही खेल चला तो लोगों का विश्वास सारी व्यवस्था से उठ जाएगा। जहां तक विधेयक के विरोध करने वाले लालू यादव की बात है तो वे राज की राजनीति के सबसे बड़े अवसरवादी नेता हैं।जब उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था तब उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी सोच को उजागर कर दिया था आज उनका विरोध बेमानी है। कल जब आरक्षण पूरी तरह से लागू हो जाएगा तब सबसे पहले लाभ उठाने वालों की कतार में पहले नंबर पर यही लालूयादव खड़े नजर आएंगे। आज जरुरत इस बात की भी है कि येसे अवसरवादी का चेहरा बेनकाब करें.

Friday, March 5, 2010

क्या महिलाओं को मिलेगा उनका हक

पूरे देश में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल पर चर्चा हो रही है। बिल संसद में पेश हो चुका है और 8मार्च को इस पर मतदान कराए जाने की चर्चा है। इस दिन महिलाओं के लिए खास दिन है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस। क्या पुरुष पऱधान य़ह समाज, महिलाओं को यह तोहफा देने के लिए तैयार है। यह सवाल आज हर किसी के मन में कौंध रहा है।जिस बिल के पास होते ही पुरुषों का हक मारा जाएगा उस बिल को क्या बहुसंख्यक सांसद पास होने देंगें। इस बात की संदिग्धता जब तक इस पर फैसला नहीं हो जाता कायम ही रहेगा। हालांकि आज के इस युग में महिलाएं पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में कार्य कर रही है किन्तु कहीं न कहीं आज भी नारी का शोषण हो रहा है और उन पर जुल्म की दास्तान लिखी जा रही है। संसद में बैठने वाले नीति नियंता यह कभी नहीं स्वीकार करेगें कि संसद की आधी कुर्सी पर महिलाओं का कब्जा हो। क्योंकि किस्सा ही कुर्सी का है। आज लोकसभा अध्यक्ष जो स्वयं महिला है ने व्हीप जारी कर सभी सांसदों की उपसिथित तय कर दी है किन्तु कौन वोट करेगा इसका पता कैसे चल पाएगा और इस बात की क्या गारंटी है कि बिल पर बहस और हंगामा न हो। यह भी हो सकता है कि बिल पर मतदान का अवसर ही न आए। यदि यह बिल पास होता है तो महिलाओं को उनके दिवस पर पुरुष समाज का एक अनुपम तोहफा ही होगा.

Sunday, February 28, 2010

हाकी की जीत का यह सिलसिला कायम रहे

भारत में हो रहे विश्व कप हाकी का भारत आज पहला मैच अपने परंपरागत विरोधी पाकिस्तान के साथ खेला और शानदार ढंग से ४-१ से विजय हासिल की है। बरसों बाद भारत ने अपने जीत का झंडा लहराया है किन्तु यह झंडा विश्व विजेता होने तक लहराना चाहिए तभी भारत की खोई हुई इज्जत वापस हासिल हो सकती है। कई बार का विश्व विजेता रह चुके भारत को अब जीत के लिए तरसना पड़ता है इससे दुभाग्य की बात क्या होगी। जान पड़ता हैविश्व विजेता भारत से जीत ही रुठ गई है।दरअसल जिस स्तर का हाकी आज अन्य देशों में खेला जा रहा है और जो सुविधाएं वहां के खिलाडियों को दी जा रही है वह सुविधा हमारे खिलाडियों को उपलब्ध नहीं है। शायद इसीलिए हम लगातार हारते ही जा रहे हैं।आज मैदान में जनता की मौजूदगी को देखकर भी अफसोस होने लगा क्योकि विरेन्दऱ सहवाग का विज्ञापन हम लगातार देख रहे थे कि मैं भी जनता के बीच बैठ कर हल्ला करुंगा, झंडा लहराउंगा, नारे लगाउंगा किन्तु आज मैदान में न सहवाग दिखे और न हिरोइन दिखी। शायद ये आते तो मैदान में थोड़ी भीड़ और आ जाती। खिलाडियों का हौसला बढ़ जाता।किन्तु पैसा लेकर टीवी में विज्ञापन करने वाले यह लोग देश की हार या जीत पर न तो जश्न ही मनाएंगे और न ही शोक करेंगे। यह तो जो भी करते हैं केवल अपना जेब भरने के लिए ही करते हैं। आज भारत का खेल उमदा रहा है। इसके लिए सभी खिलाडियों का हौसला बढ़ाने की जरुरत है। हम कामना करें कि भारत के जीत का यह लय अब विश्व विजेता का खिताब लेने तक न टूटे। सभी भारतीय खिलाडियों के जीत की बधाई और आगे भी बेहतर खेल की शुभकामनाएं........

Tuesday, February 23, 2010

कहां गये होली के रंग,

समय बदलने के साथ होली का स्वरुप भी बदल गया है. पहले होली का इंतजार होता था. गांवों की होली अदभूत होती थी. धीरे-धीरे होली का मायने ही बदल गया है. अब होली का मतलब केवल हुड़दंग ही रह गया है. नशे की हालत में रा िा के समय दंगा-फसाद, यहां तक की ह याएं तक होना इस यौहार की ाासदी बन गई है. रंग, गुलाल और आबीर गायब है उसकी जगह खून की होली खेली जाती है. होली का रंग अब बदरंग हो चुका है.होली का मजा गांवों में सबसे ज्यादा देखने को आता था. पारंपरिक ढंग से सं या गांव के गौठान में होली के लिए लकडिय़ां एक िात की जाती थी. बकायदा अपने ारोंं से लोग लकड़ी और कंडा लाते थे जिसे पूजा अर्चना कर पूरे गांव की उपस्थिति में सबसे बुजर्ग या मुखिया होली जलाता था. फाग गाये जाते थे. दूसरे दिन रंग उ सव की शुरआत दोपहर बाद होती थी. दोपहर के बाद धुर पार्टी नया कपड़ा पहनकर गाजे बाजे के साथ गांव के मु य स्थान पर एक िात होते थे जहां मादर की थाप पर सभी थिरकते थे और एक दूसरे पर रंग डालकर होली मनाते थे.जिस यौहार में कपड़ा खराब होने की गारंटी हो उसमें भी नये कपड़ों का उपयोग करना ही हमारी परंपरा और संस्कृुति रही है कि तु अब होली की आड़ में शहरों का माहौल ही बिगड़ चुका है. होली का खुमार दो दिन पहले ही चढऩे लगता है. खुमार या शराब का नशा लोगों पर हावी हो जाता है. लगभग यही स्थिति गांवों की भी हो रही है. संभ्रांत परिवार अब न तो होली खेलने में रुचि दिखाता और न ही होलियारा अंदाज ही दिखा पाता है. होली जैसे यौहार की अस्मिता बनाए रखने एक बार फिर इसे मनाने के अंदाज बदलने की जरुरत है

Saturday, February 6, 2010

गांवों की सत्ता पर भी चढ़ा शहरी तामझाम का चोला

भारत में पंचायती राज व्यवस्था को पूरी तरह से लागू कराने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जाता है.इसके पीछे उनकी मंशा राष्ट्रपिता महा मा गांधी के ग्राम स्वराज्य के सपने को साकार करना रहा है.स्व. राजीव गांधी काफी हद तक अपने उद्देश्यों में कामयाब भी रहे कि तु समय बितने के साथ ही पंचायती राज व्यवस्था का स्वरुप भी बिगडऩे लगा. राजनीति में आने का अर्थ समाजसेवा था कि तु अब राजनीति स्वयं को साधन संप न बनाने का सा य बन चुका है.शायद इसीलिए गांव की राजनीति भी संप नता की ईदगिर्द ही घूम रही है. भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है. इस बात पर हम हमेशा गर्व करते हैं और करते भी रहेंगे कि तु प्रजातंत्र आज पूरी तरह लोभ और लालच के मोहजाल में फंसा हुआ है. शायद इसी कारण सही व्यक्तियों का चुनाव नहीं हो पाता और स ता पर अवसरवादी तथा चुनावी र ा में साम दाम दंड भेद की नीति अपनाने वालों की ही जय हो रही है.छ तीसगढ़ में िास्तरीय पंचायत चुनाव हाल ही में संप न हुआ है. अ य चुनावों के मुकाबले गांव की स ता हथियाने इस बार ज्यादा ही जोर और सं ार्ष परिलक्षित हुआ है. पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव पूरी तरह शहरी चुनाव की तर्ज पर लड़ा गया और कहीं-कहीं तो शहर के चुनावी तामझाम को गांव का माहौल पीछे खदेड़ते दिखाई दिया. प्रचार प्रसार सहित अ य चुनावी हथकंडे किसी भी बड़े चुनाव से कम नहीं था. ाोषित तौर पर पंचायतों का चुनाव दलगत आधार पर नहीं होता कि तु अ ाोषित तौर पर राजनैतिक दलों की पूरी दखलंदाजी इस चुनाव में रहती है.स ताधारी दल और विपक्ष जब आमने सामने हो तो वह सारे उपक्रम किए जाते हैं जो लोकसभा विधानसभा और नगरीय निकाय चुनाव में किए जाते हैं.हर चुनाव में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने प्रलोभन का सिलसिला शुरु होता है. बड़े चुनाव में यह क्रम रात के अंधेरे में अथवा गुपचुप तरीके से चलता है कि तु पंचायत चुनाव में तो सबकुछ खुलेआम ही चला है. शराब, साड़ी, कपड़ा, टोपी, झोला,कंबल,बिछिया, सहित अ य सामग्री बांटी गई है. चुनाव चाहे उ"ा स्तर की हो या सबसे नीचे स्तर की. मतदाताओं को आकर्षित करने और उ हें प्रलोभन देकर अपने पक्ष में करने की परंपरा पर अंकुश तो हर हाल में लगना ही चाहिए.चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने का दावा तो करता है कि तु चुनाव के आड़ में पैसे के जोर में आयोग की निष्पक्षता भी दम तोड़ती नजर आती है.कहने को तो नियम और कानून सभी बने है कि तु कौन नियम मान रहा है और कहां नियमों का पालन हो रहा है यह वास्तविकता के धरातल पर कही नजर ही नहीं आता. चुनाव आयोग अपने स्तर पर प्रेक्षक भेजने से लेकर अ य कार्य भी करती है कि तु या किसी प्रेक्षक ने आज तक किसी बड़ी गड़बड़ी को उजागर किया है. प्रेक्षकों की भूमिका महज एक चौकीदार की तरह है जो हर आने जाने वाले पर केवल नजर रखता है. उसे गड़बड़ी भी दिखाई दे तो वह आंखें मूंद लेता है. ऐसे में व्यवस्था में सुधार की गुंजाईश कहां है. मतदान के एक दिन पूर्व सारे शराब दुकानों को सील कर शुष्क दिवस ाोषित कर दिया जाता है. दूसरी ओर चुनाव लडऩे वाले हर प्र याशी के पास मांग के अनुरुप पेटियां पहुंच चुकी होती है. अवैध शराब रखना भी एक जुर्म है कि तु चुनाव के दौरान यह जुर्म हर चुनाव लडऩे वाला करता हैं कि तु न तो पुलिसिया कार्यवाही होती है और न ही आबकारी दरोगों की नजर इन पर पड़ती है.जिन उद्देश्यों को लेकर पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है वह अपने उद्देश्यों से भटकता नजर आ रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार ही है.जिस देश की सर्वो"ा संस्था संसद में आवाज उठाने के लिए पैसे लिए जाते हों वहां के ग्राम सभा में कोई प्रस्ताव पारित करवाने कैसे पैसा नहीं लगता होगा.गांव की स ता में भी भ्रष्टाचार की जो बू आ रही है उसके पीछे भी बड़े भ्रष्ट नेताओं का ही चेहरा दिखाई देता है.पंच से लेकर सरपंच जैसे पदों के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. फिर चुनाव जीतने के बाद खर्च किए रकम की वापसी की चिंता किसे नहीं होगी. छ तीसगढ़ के 17 जिलों में िास्तरीय पंचायत चुनाव तीन चर ाों में संप न हुआ है. गांव-गांव में चुनावी माहौल पूरे शबाब पर रहा.पोस्टर बैनर से पटे गांवों में शराब की नदिया बहती नजर आयी. महिलाओं के लिए साड़ी, लाउज पीस, चांदी की बिछिया तो पुरुषों के लिए मुर्गा, बकरा, दारु की व्यवस्था चुनाव के दौरान हर प्र याशी के लिए मजबूरी के रुप में सामने आया है. लाखों रुपये खर्च कर चुनाव जीतने वाला प्रतिनिधि सबसे पहले अपने खर्च किए पैसे की वापसी चाहता है जिसके लिए गांव के विकास के नारा को तिलांजलि देकर स्वहित में जुट जाता है. ऐसे में गांव के सर्वागी ा विकास की बात बेमानी हो जाती है.जनसेवा और विकास की बातें चुनाव निपटने के साथ ही बिसरा दी जाती है.कमीशन खोरी सहित अ य अवैैध कार्यो में लि त प्रतिनिधि को गांव वासी पांच साल तक कोसते रहते हैं.यदि निर्वाचित प्रतिनिधि स ताधारी दल का समर्थक हुआ तो और मत पूछो. वह प्रतिनिधि से सीधे ठेकेदार बनकर कार्य करने लगता है.लोकसभा विधानसभा चुनाव प्रक्रिया में सुधार की बात तो काफी दूर की कौड़ी है. सबसे नीचे स्तर के इस पंचायत चुनाव में सुधार का प्रयास होना अब जरुरी हो गया है. साधु संत अ सर अपने प्रवचनों में यह सीख देते हैं कि देश को सुधारना है तो पहले समाज को सुधारो, समाज को सुधारना है तो पहले अपने ार को सुधारो और ार को सुधारना है तो पहले अपने आप को सुधारो,कहने का ता पर्य यह है कि सुधार की शुरुआत हर व्य ित को करनी पड़ेगी. गांव का प्रतिनिधि लाखों रुपये खर्च कर जिला, जनपद सरपंच निर्वाचित होता है, वह पहले अपना हित देखता है फिर गांव के बारे में सोचता है.शहरों की अपेक्षा आज गांवों की स्थिति ज्यादा ही चिंताजनक है.गांव-गांव में शराब दुकानें खुल गई है, जहां दुकानें नहीं खुली है वहां अवैध शराब पहुंच रही है.गांव का अधिकांश युवा वर्ग आज पूरी तरह नशे की चपेट में है. गांवों में खेती की जमीन ाटती जा रही है.कल कारखाने और विकास की आड़ में भू-माफिया किसानों की जमीन हथिया रहे है. भारी तादात में ग्रामी ा शहरों की ओर पलायन कर रहे है. पशु की सं या भी गांवों में अब तेजी से कम हो रहा है. आने वाले समय सबसे बड़ा संकट खाद्या न की कमी का होगा योंकि गांवों में खेती करने यो य भूमि ही नहीं बचेगी. शहर से लगे गांवों में यह स्थिति अभी से उ प न हो गई है कि तु इस ओर किसी का यान ही नहीं है. चुनावों में इसी तरह पैसे का खेल चलता रहा तो और मनमानी होती रही तो गांव का गांव बंजर में त दील हो जाएगा. तब न चुनाव होगें और न ही कोई प्रतिनिधि ही निर्वाचित हो पाएगा.ग्रामी ाों को आज से ही अपनी स्थिति पर गंभीरता से विचार करना होगा अ यथा गांवों की दुर्गति बढ़ती ही जाएगी. ा भारत में पंचायती राज व्यवस्था को पूरी तरह से लागू कराने का ोय पूर्व प्रधानमं ाी राजीव गांधी को जाता है.इसके पीछे उनकी मंशा राष्ट्रपिता महा मा गांधी के ग्राम स्वराज्य के सपने को साकार करना रहा है.स्व. राजीव गांधी काफी हद तक अपने उद्देश्यों में कामयाब भी रहे कि तु समय बितने के साथ ही पंचायती राज व्यवस्था का स्वरुप भी बिगडऩे लगा. राजनीति में आने का अर्थ समाजसेवा था कि तु अब राजनीति स्वयं को साधन संप न बनाने का सा य बन चुका है.शायद इसीलिए गांव की राजनीति भी संप नता की ईदगिर्द ही ाूम रही है. भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातां िाक देश है. इस बात पर हम हमेशा गर्व करते हैं और करते भी रहेंगे कि तु प्रजातं ा आज पूरी तरह लोभ और लालच के मोहजाल में फंसा हुआ है. शायद इसी कार ा सही व्य ितयों का चुनाव नहीं हो पाता और स ता पर अवसरवादी तथा चुनावी र ा में साम दाम दंड भेद की नीति अपनाने वालों की ही जय हो रही है.छ तीसगढ़ में िास्तरीय पंचायत चुनाव हाल ही में संप न हुआ है. अ य चुनावों के मुकाबले गांव की स ता हथियाने इस बार ज्यादा ही जोर और सं ार्ष परिलक्षित हुआ है. पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव पूरी तरह शहरी चुनाव की तर्ज पर लड़ा गया और कहीं-कहीं तो शहर के चुनावी तामझाम को गांव का माहौल पीछे खदेड़ते दिखाई दिया. प्रचार प्रसार सहित अ य चुनावी हथकंडे किसी भी बड़े चुनाव से कम नहीं था. ाोषित तौर पर पंचायतों का चुनाव दलगत आधार पर नहीं होता कि तु अ ाोषित तौर पर राजनैतिक दलों की पूरी दखलंदाजी इस चुनाव में रहती है.स ताधारी दल और विपक्ष जब आमने सामने हो तो वह सारे उपक्रम किए जाते हैं जो लोकसभा विधानसभा और नगरीय निकाय चुनाव में किए जाते हैं.हर चुनाव में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने प्रलोभन का सिलसिला शुरु होता है. बड़े चुनाव में यह क्रम रात के अंधेरे में अथवा गुपचुप तरीके से चलता है कि तु पंचायत चुनाव में तो सबकुछ खुलेआम ही चला है. शराब, साड़ी, कपड़ा, टोपी, झोला,कंबल,बिछिया, सहित अ य सामग्री बांटी गई है. चुनाव चाहे उ"ा स्तर की हो या सबसे नीचे स्तर की. मतदाताओं को आकर्षित करने और उ हें प्रलोभन देकर अपने पक्ष में करने की परंपरा पर अंकुश तो हर हाल में लगना ही चाहिए.चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने का दावा तो करता है कि तु चुनाव के आड़ में पैसे के जोर में आयोग की निष्पक्षता भी दम तोड़ती नजर आती है.कहने को तो नियम और कानून सभी बने है कि तु कौन नियम मान रहा है और कहां नियमों का पालन हो रहा है यह वास्तविकता के धरातल पर कही नजर ही नहीं आता. चुनाव आयोग अपने स्तर पर प्रेक्षक भेजने से लेकर अ य कार्य भी करती है कि तु या किसी प्रेक्षक ने आज तक किसी बड़ी गड़बड़ी को उजागर किया है. प्रेक्षकों की भूमिका महज एक चौकीदार की तरह है जो हर आने जाने वाले पर केवल नजर रखता है. उसे गड़बड़ी भी दिखाई दे तो वह आंखें मूंद लेता है. ऐसे में व्यवस्था में सुधार की गुंजाईश कहां है. मतदान के एक दिन पूर्व सारे शराब दुकानों को सील कर शुष्क दिवस ाोषित कर दिया जाता है. दूसरी ओर चुनाव लडऩे वाले हर प्र याशी के पास मांग के अनुरुप पेटियां पहुंच चुकी होती है. अवैध शराब रखना भी एक जुर्म है कि तु चुनाव के दौरान यह जुर्म हर चुनाव लडऩे वाला करता हैं कि तु न तो पुलिसिया कार्यवाही होती है और न ही आबकारी दरोगों की नजर इन पर पड़ती है.जिन उद्देश्यों को लेकर पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है वह अपने उद्देश्यों से भटकता नजर आ रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार ही है.जिस देश की सर्वो"ा संस्था संसद में आवाज उठाने के लिए पैसे लिए जाते हों वहां के ग्राम सभा में कोई प्रस्ताव पारित करवाने कैसे पैसा नहीं लगता होगा.गांव की स ता में भी भ्रष्टाचार की जो बू आ रही है उसके पीछे भी बड़े भ्रष्ट नेताओं का ही चेहरा दिखाई देता है.पंच से लेकर सरपंच जैसे पदों के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. फिर चुनाव जीतने के बाद खर्च किए रकम की वापसी की चिंता किसे नहीं होगी. छ तीसगढ़ के 17 जिलों में िास्तरीय पंचायत चुनाव तीन चर ाों में संप न हुआ है. गांव-गांव में चुनावी माहौल पूरे शबाब पर रहा.पोस्टर बैनर से पटे गांवों में शराब की नदिया बहती नजर आयी. महिलाओं के लिए साड़ी, लाउज पीस, चांदी की बिछिया तो पुरुषों के लिए मुर्गा, बकरा, दारु की व्यवस्था चुनाव के दौरान हर प्र याशी के लिए मजबूरी के रुप में सामने आया है. लाखों रुपये खर्च कर चुनाव जीतने वाला प्रतिनिधि सबसे पहले अपने खर्च किए पैसे की वापसी चाहता है जिसके लिए गांव के विकास के नारा को तिलांजलि देकर स्वहित में जुट जाता है. ऐसे में गांव के सर्वागी ा विकास की बात बेमानी हो जाती है.जनसेवा और विकास की बातें चुनाव निपटने के साथ ही बिसरा दी जाती है.कमीशन खोरी सहित अ य अवैैध कार्यो में लि त प्रतिनिधि को गांव वासी पांच साल तक कोसते रहते हैं.यदि निर्वाचित प्रतिनिधि स ताधारी दल का समर्थक हुआ तो और मत पूछो. वह प्रतिनिधि से सीधे ठेकेदार बनकर कार्य करने लगता है.लोकसभा विधानसभा चुनाव प्रक्रिया में सुधार की बात तो काफी दूर की कौड़ी है. सबसे नीचे स्तर के इस पंचायत चुनाव में सुधार का प्रयास होना अब जरुरी हो गया है. साधु संत अ सर अपने प्रवचनों में यह सीख देते हैं कि देश को सुधारना है तो पहले समाज को सुधारो, समाज को सुधारना है तो पहले अपने ार को सुधारो और ार को सुधारना है तो पहले अपने आप को सुधारो,कहने का ता पर्य यह है कि सुधार की शुरुआत हर व्य ित को करनी पड़ेगी. गांव का प्रतिनिधि लाखों रुपये खर्च कर जिला, जनपद सरपंच निर्वाचित होता है, वह पहले अपना हित देखता है फिर गांव के बारे में सोचता है.शहरों की अपेक्षा आज गांवों की स्थिति ज्यादा ही चिंताजनक है.गांव-गांव में शराब दुकानें खुल गई है, जहां दुकानें नहीं खुली है वहां अवैध शराब पहुंच रही है.गांव का अधिकांश युवा वर्ग आज पूरी तरह नशे की चपेट में है. गांवों में खेती की जमीन ाटती जा रही है.कल कारखाने और विकास की आड़ में भू-माफिया किसानों की जमीन हथिया रहे है. भारी तादात में ग्रामी ा शहरों की ओर पलायन कर रहे है. पशु की सं या भी गांवों में अब तेजी से कम हो रहा है. आने वाले समय सबसे बड़ा संकट खाद्या न की कमी का होगा योंकि गांवों में खेती करने यो य भूमि ही नहीं बचेगी. शहर से लगे गांवों में यह स्थिति अभी से उ प न हो गई है कि तु इस ओर किसी का यान ही नहीं है. चुनावों में इसी तरह पैसे का खेल चलता रहा तो और मनमानी होती रही तो गांव का गांव बंजर में त दील हो जाएगा. तब न चुनाव होगें और न ही कोई प्रतिनिधि ही निर्वाचित हो पाएगा.ग्रामी ाों को आज से ही अपनी स्थिति पर गंभीरता से विचार करना होगा अ यथा गांवों की दुर्गति बढ़ती ही जाएगी.

Friday, January 22, 2010

तरु ा सागर के कड़वे प्रवचन की कड़वी यादें

राष्ट्रसंत तरु ा सागर का प्रवचन सुनने का सौभा य प्रा त हुआ. कड़वे प्रवचन के लिए वि यात तरु ा सागर की बातों में कड़वाहट बिल्कुल ही नहीं है बल्कि आज समाज और ार- ार में व्या त असमानता, भेदभाव टूटते संयु त परिवार सहित अ य बुराइयों को वे बेखौफ उजागर करते हैं बदले में उ हें करतल वनि से वाहवाही मिलती है. तरु ा सागर के प्रवचन सुनने सैकड़ो लोग एक िात होते हैं जिनमें सभी धर्म और समाज के लोग होते हैं. तरु ा सागर पहले जैन संत होगें जिनके प्रवचन सुनने गैर जैनी ज्यादा सं या में होते हैं. यह उपल िध जैन समाज की नहीं बल्कि तरु ा सागर की है जिनकी वा ाी में कथित कड़वाहट के बावजूद गैर जैनी प्रवचन सुनने के लिए जा रहे हैं. मुझे एक प्रसंग याद है. दुर्ग छ तीसगढ़ में अपने प्रवचन के दौरान तरु ा सागर ने कहा कि मंदिर और मस्जिद का मह व एक बाथरुम से ज्यादा नहीं है. जिस तरह तन की गंदगी , मैल साफ करने हम बाथरुम जाते हैं उसी तरह मन की गंदगी साफ करने मंदिर मस्जिद जाते हैं. तरु ा सागर के इस कथन पर हि दू समाज में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई कि तु मुस्लिम समाज उ तेजित हो उठा और संत के कथन पर आप ित उठाने लगे. संत अथवा अ य किसी समाज की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई और न ही संत की ओर से कोई स्पष्टी कर ा ही दिया गया. संत दो दिन बाद दुर्ग से रवाना हो गये. यही समाज में फैली कड़वाहट है. संत अपनी बातें कड़वी करतें हैं लेकिन वह किसी को कड़वा नहीं लगता योकि आज देश और समाज में फैली कड़वाहट के पीछे कहीं न कहीं समाज का ठेकेदार खड़ा है जो समाज को पीछे खदेड़ रहा है.तरु ा सागर जैन समाज के संत हैं. पूरा समाज उनकी आगवानी केलिए नतमस्तक रहता है कि तु समाज के ही कथित लोग संत के आगमन पर भी धंधा करने से बाज नहीं आते . इसी बात की पीड़ा रह जाती है. संत के स्वागत में शहर में बड़े-बड़े होल्डिंग लग जाती है. प्रवचन के लिए भव्य मंच तैयार किया जाता है. आखिर ऐसी फिजूलखर्ची यों. एक तरफ संत सादगी का संदेश देते हैं तो दूसरी ओर उनके ही अनुयायी लाखों खर्च कर कार्यक्रम की सफलता का बखान करते े हैं और वाहवाही लूटने से भी नहीं चुकते. शायद उ हें नहीं मालूम की तरु ा सागर खुले आसमान के नीचे भी प्रवचन करने बैठ जाए तो उ ह सुनने भीड़ उमड़ पड़ेगी. ऐसे संतों का आगमन होता रहे और जनमानस को आ मा ाान होता रहे कि तु संत को लेकर भी धंधा करने की कोशिशों पर अंकुश लगना चाहिए.

Tuesday, January 19, 2010

राजे द्र सिंह ठाकुर शासन की योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभदुर्ग. 19 जनवरी 2010. छ तीसगढ़ सरकार द्वारा गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को निजी चिकि सालय में चिकि सा सुविधा उपल ध कराने एक योजना की शुरुआत की है जिसमें परिवार के मुखिया के नाम स्मार्ट कार्ड बनेगा और लगभग तीस हजार तक का इलाज मु त किया जाएगा. शासन की मंशा में कोई खोट नहीं है. यह सुविधा लागू भी कर दी गई है कि तु जिन निजी चिकि सालयों को यह सुविधा उपल ध कराना है वह जरा भी गंभीर नहीं है. जिस तरह से प्रद्श सरकार की एक अ य बड़ी योजना जिसमें गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवार के ब"ाों को हृदय रोग की चिकि सा उपल ध करना है. इस योजना का व्यापक लाभ मिल रहा है और संबंधित निजी अस्पताल भी इसमें भारी रुचि दिखा रहे हैं कि तु स्मार्ट कार्ड योजना के प्रति शासन से मा यता प्रा त निजी चिकि सालयों की रुचि नहीं है जिसके कार ा गरीब मरीज स्मार्ट कार्ड होने के बाद भी मौत के मुंह में समा रहे हैं.ऐसा ही एक वा या हाल ही में दुर्ग में ाटित हुआ है. एक गरीब महिला प्रसव के बाद इ फे शन से पिड़ीत थी. उसे सरकारी अस्पताल में चिकि सा सुविधा नहीं मिली. एक निजी चिकि सालय में रिफर कर दिया गया जहां जांच पड़ताल पश्चात आईसीयू में स्थान नहीं है का बहाना बना कर भर्ती नहीं किया गया. स्मार्ट कार्ड होने के बाद उनके परिजन उसे लेकर दर-दर भटकते रहे कि तु किसी अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया.आखिर परिजन थकहार कर उसे ार ले गए जहां दो दिनों बाद उसकी मौत हो गई.योजनाएं चाहे कितनी बढिय़ा यों न हो लेकिन जब तक उसका सही क्रिया वयन नहीं हो तब तक उसका कोई लाभ नहीं है. इस ाटना सेयह बात साफ हो गया कि गरीब का कोई नहीं है . सरकार सिर्फ योजना लागू करने का काम न करे बल्कि यह भी देखे कि योजना का लाभ गरीबों को हो रहा है अथवा नहीं. आखिर उस गरीब महिला की मौत के लिए कौन जि मेदार है. ऐसे लोगों के विरु द स ती की जरुरत है .ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ गरीब से गरीब व्य ित को हो सके.--------------

Friday, January 15, 2010

नगरीय निकाय चुनाव में हार की चिंता करे भाजपा

राजे द्र ठाकुर
संप न नगरीय निकाय चुनाव में स तारुढ़ भाजपा को काफी जोर का झटका लगा है. आकड़े के लिहाज से भाजपा भले ही बाजी मारने में सफल रही है कि तु राजधानी रायपुर सहित यायधानी बिलासपुर और राजनांदगांव में भाजपा की हार से खतरे की ांटी बज गई है. हालांकि पंचायत चुनाव को छोड़कर अभी कोई बड़ा चुनाव नहीं है इसलिए भाजपा के लिए यह राहत का विषय जरुर हो सकता है. वैशालीनगर विधानसभा चुनाव में जिस तरह स ेभाजपाइयों ने भाजपा को हराया ठीक उसी तरह का ग िात नगरीय निकाय चुनाव में भी खेला गया. दुर्भा यजनक स्थिति यह है कि भाजपा अभी भी इस विषय में मंथन करने को तैयार नहीं है जबकि भाजपा को आ ममंथन कर उन कार ाों को खोजना होगा जिसके कार ा पार्टी की हार हुई है. साथ ही चुनाव हारे कार्यकर्ताओं को भी राहत देनी होगी ताकि उनकी ऊर्जा बची रहे.जहां तक रायपुर में भाजपा की हार का प्रश्न है तो इसके लिए केवल संगठन ही जि मेदार है योंकि संगठन टिकट बांटकर चुपचाप बैठ गई. सबसे पहले नेताओं ने ही अपने-अपने क्षे ा में तीन-तीन नाम का पैनल बनाकर दावेदार पैदा कर दिए. एक को टिकट दी गई और दो को नाराज कर दिया गया जो ाातक साबित हुआ. मं ाी राजेश मू ात और बृजमोहन अग्रवाल को या अपने- अपने क्षे ा के दावेदारों के नाम मालूम नहीं थे कि तु उ होंने पैनल मंगाकर एक तरह पार्टी में फूट के बीज बो दिए जिसका खामियाजा पार्टी के प्र याशी को हार कर चुकानी पड़ी है.स ता में होने के बादजूद बिना किसी र ानीति के भाजपा का चुनाव लडऩा आज भारी पड़ गया है. कम से कम राजधानी रायपुर में तो अपना बहुमत जुटाने के लिए पार्टी को मश कत करनी थी कि तु पार्टी गंभीर नहीं रही और हार का सामना करने के लिए मबजूर हुई है.संगठन स्तर वार्डवार प्रभारियों और चुनाव संचालकों की नियु ित कर जीत का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता था कि तु ऐसा लगता हैकि पार्टी के ही लोग एक बार फिर प्रदेश के मुखिया रमन सिंह को हार का मजा चखाना चाहते थे और वे इस नीति में कामयाब भी रहे. शायद इसी कार ा हार की चिंगारी स्वयं मु यमं ाी के क्षे ा राजनांदगांव तक पहुंच गई.आज पार्टी को चिंतन करने की जरुरत है कि आखिर किन परिस्थितियों हार हुई है. उन कार ाों का पता लगाकर स्थायी हल ढूंढने की जरुरत है. अ यथा पार्टी के द्र की तर्ज पर राज्य में रसातल में चली जाएगी. पार्टी में गद्दारी करने वालों को बिल्कुल ही नहीं ब शा जाना चाहिए तभी पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की आन बढ़ेगी और पार्टी की शान भी बढ़ेगी. गद्दारों के पीठ थपथपाने की परंपरा को बढ़ावा मिला तो निष्ठावान कार्यकर्ता मायूस होकर पार्टी की मु यधारा से हट जाएंगे. ऐसे में अवसरवादियों को लेकर कोई जंग नहीं जीती जा सकती. भाजपा ने रायपुर में जिस तरह से बहुमत नहीं होने के बाद भी सभापति बनाकर एक राजनैतिक जीत हासिल की ठीक उसी तरह के प्रयास पार्षदों के चुनाव में किए जाते तो शायद पार्टी की इतनी बुरी गति नहीं होती. भाजपा को अब आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव को लक्ष्य लेकर काम करना पड़ेगा. आज भी पार्टी के पास की ऐसे मुद्दे हैं जो के द्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ जा सकता है. जरुरत है उसे भुनाने की. मंहगाई का मामला ऐसा बन चुका है कि सरकार को कभी भी ोरा जा सकता है.

Thursday, January 14, 2010

The journey from Five Star Tnbu

BJP's national base of his own party leaders demigod Nitin Gadkari to learn Nice to join the National Council held in the coming days devoted five Instead of staying in star hotels Tnbu. Of volunteers in the BJP's A Gdkri Zee NO Culture to develop, but today the BJP's National Council Menshamil How many leaders are connected to A NO. In the spotlight falls like T Gandhari whose eyes confusion She also has bandages Tnbu Fun refused return of the honeymoon. Or The back of the BJP will return to T Ta. In fact in the eyes of NO A BJP Atta The base is becoming a concern. Today, more anxious about the fact that A NO How will the BJP again in C Ta. A chief Nitin NO party base to demigod Advocate is to confirm this as the BJP's charge that NO Aoshit A A Has handle. The BJP also wants to see that A is NO discipline in which one server Swynn Is. Thanks to this discipline has grown today and NO A graph of the popularity of Pain and the issue is Bhunati bones. BJP on the issue of bones and the pain could be occupied t Ta. The day the BJP and the issue of pain and bones of left and right Gungan Zi for political gains From that day began to graph the BJP has started falling down. After becoming a demigod of the same things Gdkri A are A who wants NO. The intention Gdkri Five Star's culture is Yagne in spotlight Yonki BJP of India Sign In the last election was far from Ta T Chaundia doing. NO to the next Lok Sabha elections A Vehicle Keep working so as to return to the BJP T Ta. A purpose of NO may I'm not achieve that without Ta S T Ta tu read only by public service when the multiplication table Can be. It all know that Saddam's political goal is that all the Ta tu NO A Even with the simplicity and purity Ta t want to live in the BJP during Saddam falls somewhere Did not see. Bones of the nation's grief and NO A work of imagination to realize a BJP Leaders can not work only one server can do yourself, this NO A major Know very well why the A demigod was created and Gdkri Gdkri saying the same things Are the language of A is NO. To bring the party line Gdkri still very Kt Ms have to.

पांच सितारा से तंबु तक का सफर

राजे द्र ठाकुर
भाजपा के राष्ट्रीय अ यक्ष नितिन गडकरी का अपने ही पार्टी के नेताओं को यह सीख देना
अच्छा लगा कि आगामी दिनो में आयोजित राष्ट्रीय परिषद में शामिल होने वाले नेता पांच
सितारा होटलों की बजाए तंबु में रुके. ाी गड़करी स्वयंसेवक हैं इसलिए भाजपा में सं ा की
संस्कृति विकसित करना चाहते हैं लेकिन आज भाजपा के राष्ट्रीय परिषद मेंशामिल होने वाले
कितने नेता सं ा से जुड़े हैं. स ता के चकाचौंध में गांधारी की तरह जिनके आंखों में भ्रम की
पट्टी बंधी है वह तो तंबु में भी मौजमस्ती का हनीमून मना कर लौट आएंगे. या इससे
भाजपा फिर से के द की स ता में लौट पाएगी. दरअसल सं ा की नजरों में भाजपा का ाटता
जनाधार चिंता का विषय बनता जा रहा है. आज सं ा इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित है कि
भाजपा फिर से स ता में कैसे आएगी.सं ा प्रमुख का नितिन को पार्टी अ यक्ष बनाने की
वकालत करना इस बात की पुष्टि करता है कि सं ा अ ाोषित रुप से भाजपा की बागडोर
संभाल चुकी है. सं ा भाजपा में भी वही अनुशासन देखना चाहती है जो एक स्वयंं सेवक में
होता है. इसी अनुशासन की बदौलत ही आज सं ा की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा है और
हि दु व के मुद्दे को भुनाती रही है. भाजपा हि दु व के मुद्दे पर ही स ता पर काबिज हो पायी.
जिस दिन भाजपा ने हि दु व का मुद्दा छोड़ा और जि ना का गुनगान राजनैतिक लाभ के लिए
करने लगे उसी दिन से ही भाजपा का ग्राफ नीचे गिरने लगा है.
गड़करी के अ यक्ष बनने के बाद वही
बातें हो रही जो सं ा चाहता है.
गड़करी की मंशा पांच सितारा की
संस्कृति को यागने की है योंकि भाजपा
इंडिया साइन के चकाचौंध में ही पिछले
चुनाव में चौंधिया कर स ता से दूर हो गई
थी. सं ा अगले लोकसभा चुनाव को यान
रखकर कार्य कर रही ताकि फिर से
भाजपा स ता में लौट सके. सं ा का
उद्देश्य भले ही स ता हासिल करना न
रहा हो कि तु बिना स ता को केवल जनसेवा
का पहाड़ा कब तक पढ़ा जा सकता है.
यह बात सभी जानते हैं कि स ता ही सभी का
राजनैतिक लक्ष्य है कि तु सं ा स ता के साथ
सादगी और शुचिता भी चाहती है जो भाजपा
के स ता में रहने के दौरान कहीं नजर
नहीं आयी. सं ा के हि दु व राष्ट्र की
कल्पना को साकार करने का काम कोई
भाजपा नेता नहीं कर सकता यह कार्य
केवल एक स्वयं सेवक ही कर सकता है, यह
बात सं ा प्रमुख भलीभांति जानते हैं इसीलिए
गड़करी को अ यक्ष बनाया गया और
गड़करी वही बातें बोल रहे हैं जो
सं ा की भाषा है . गड़करी को पार्टी को
लाईन में लाने के लिए अभी बहुत मश कत
करनी पड़ेगी.
राजे द्र ठाकुर
पांच सितारा से तंबु तक का सफर
भाजपा के राष्ट्रीय अ यक्ष नितिन गडकरी का अपने ही पार्टी के नेताओं को यह सीख देना
अच्छा लगा कि आगामी दिनो में आयोजित राष्ट्रीय परिषद में शामिल होने वाले नेता पांच
सितारा होटलों की बजाए तंबु में रुके. ाी गड़करी स्वयंसेवक हैं इसलिए भाजपा में सं ा की
संस्कृति विकसित करना चाहते हैं लेकिन आज भाजपा के राष्ट्रीय परिषद मेंशामिल होने वाले
कितने नेता सं ा से जुड़े हैं. स ता के चकाचौंध में गांधारी की तरह जिनके आंखों में भ्रम की
पट्टी बंधी है वह तो तंबु में भी मौजमस्ती का हनीमून मना कर लौट आएंगे. या इससे
भाजपा फिर से के द की स ता में लौट पाएगी. दरअसल सं ा की नजरों में भाजपा का ाटता
जनाधार चिंता का विषय बनता जा रहा है. आज सं ा इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित है कि
भाजपा फिर से स ता में कैसे आएगी.सं ा प्रमुख का नितिन को पार्टी अ यक्ष बनाने की
वकालत करना इस बात की पुष्टि करता है कि सं ा अ ाोषित रुप से भाजपा की बागडोर
संभाल चुकी है. सं ा भाजपा में भी वही अनुशासन देखना चाहती है जो एक स्वयंं सेवक में
होता है. इसी अनुशासन की बदौलत ही आज सं ा की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा है और
हि दु व के मुद्दे को भुनाती रही है. भाजपा हि दु व के मुद्दे पर ही स ता पर काबिज हो पायी.
जिस दिन भाजपा ने हि दु व का मुद्दा छोड़ा और जि ना का गुनगान राजनैतिक लाभ के लिए
करने लगे उसी दिन से ही भाजपा का ग्राफ नीचे गिरने लगा है.
गड़करी के अ यक्ष बनने के बाद वही
बातें हो रही जो सं ा चाहता है.
गड़करी की मंशा पांच सितारा की
संस्कृति को यागने की है योंकि भाजपा
इंडिया साइन के चकाचौंध में ही पिछले
चुनाव में चौंधिया कर स ता से दूर हो गई
थी. सं ा अगले लोकसभा चुनाव को यान
रखकर कार्य कर रही ताकि फिर से
भाजपा स ता में लौट सके. सं ा का
उद्देश्य भले ही स ता हासिल करना न
रहा हो कि तु बिना स ता को केवल जनसेवा
का पहाड़ा कब तक पढ़ा जा सकता है.
यह बात सभी जानते हैं कि स ता ही सभी का
राजनैतिक लक्ष्य है कि तु सं ा स ता के साथ
सादगी और शुचिता भी चाहती है जो भाजपा
के स ता में रहने के दौरान कहीं नजर
नहीं आयी. सं ा के हि दु व राष्ट्र की
कल्पना को साकार करने का काम कोई
भाजपा नेता नहीं कर सकता यह कार्य
केवल एक स्वयं सेवक ही कर सकता है, यह
बात सं ा प्रमुख भलीभांति जानते हैं इसीलिए
गड़करी को अ यक्ष बनाया गया और
गड़करी वही बातें बोल रहे हैं जो
सं ा की भाषा है . गड़करी को पार्टी को
लाईन में लाने के लिए अभी बहुत मश कत
करनी पड़ेगी.

फेस बुक का क्रेज

आजकल फेसबुक का जमाना आ गया है, लोग अब ब्लाग को विस्मृत करते जा रहे है। ब्लाग में जो विचार उभरकर आते थे वह निश्चित रुप से पठनीय हुआ करता था ...