Friday, January 15, 2010

नगरीय निकाय चुनाव में हार की चिंता करे भाजपा

राजे द्र ठाकुर
संप न नगरीय निकाय चुनाव में स तारुढ़ भाजपा को काफी जोर का झटका लगा है. आकड़े के लिहाज से भाजपा भले ही बाजी मारने में सफल रही है कि तु राजधानी रायपुर सहित यायधानी बिलासपुर और राजनांदगांव में भाजपा की हार से खतरे की ांटी बज गई है. हालांकि पंचायत चुनाव को छोड़कर अभी कोई बड़ा चुनाव नहीं है इसलिए भाजपा के लिए यह राहत का विषय जरुर हो सकता है. वैशालीनगर विधानसभा चुनाव में जिस तरह स ेभाजपाइयों ने भाजपा को हराया ठीक उसी तरह का ग िात नगरीय निकाय चुनाव में भी खेला गया. दुर्भा यजनक स्थिति यह है कि भाजपा अभी भी इस विषय में मंथन करने को तैयार नहीं है जबकि भाजपा को आ ममंथन कर उन कार ाों को खोजना होगा जिसके कार ा पार्टी की हार हुई है. साथ ही चुनाव हारे कार्यकर्ताओं को भी राहत देनी होगी ताकि उनकी ऊर्जा बची रहे.जहां तक रायपुर में भाजपा की हार का प्रश्न है तो इसके लिए केवल संगठन ही जि मेदार है योंकि संगठन टिकट बांटकर चुपचाप बैठ गई. सबसे पहले नेताओं ने ही अपने-अपने क्षे ा में तीन-तीन नाम का पैनल बनाकर दावेदार पैदा कर दिए. एक को टिकट दी गई और दो को नाराज कर दिया गया जो ाातक साबित हुआ. मं ाी राजेश मू ात और बृजमोहन अग्रवाल को या अपने- अपने क्षे ा के दावेदारों के नाम मालूम नहीं थे कि तु उ होंने पैनल मंगाकर एक तरह पार्टी में फूट के बीज बो दिए जिसका खामियाजा पार्टी के प्र याशी को हार कर चुकानी पड़ी है.स ता में होने के बादजूद बिना किसी र ानीति के भाजपा का चुनाव लडऩा आज भारी पड़ गया है. कम से कम राजधानी रायपुर में तो अपना बहुमत जुटाने के लिए पार्टी को मश कत करनी थी कि तु पार्टी गंभीर नहीं रही और हार का सामना करने के लिए मबजूर हुई है.संगठन स्तर वार्डवार प्रभारियों और चुनाव संचालकों की नियु ित कर जीत का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता था कि तु ऐसा लगता हैकि पार्टी के ही लोग एक बार फिर प्रदेश के मुखिया रमन सिंह को हार का मजा चखाना चाहते थे और वे इस नीति में कामयाब भी रहे. शायद इसी कार ा हार की चिंगारी स्वयं मु यमं ाी के क्षे ा राजनांदगांव तक पहुंच गई.आज पार्टी को चिंतन करने की जरुरत है कि आखिर किन परिस्थितियों हार हुई है. उन कार ाों का पता लगाकर स्थायी हल ढूंढने की जरुरत है. अ यथा पार्टी के द्र की तर्ज पर राज्य में रसातल में चली जाएगी. पार्टी में गद्दारी करने वालों को बिल्कुल ही नहीं ब शा जाना चाहिए तभी पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की आन बढ़ेगी और पार्टी की शान भी बढ़ेगी. गद्दारों के पीठ थपथपाने की परंपरा को बढ़ावा मिला तो निष्ठावान कार्यकर्ता मायूस होकर पार्टी की मु यधारा से हट जाएंगे. ऐसे में अवसरवादियों को लेकर कोई जंग नहीं जीती जा सकती. भाजपा ने रायपुर में जिस तरह से बहुमत नहीं होने के बाद भी सभापति बनाकर एक राजनैतिक जीत हासिल की ठीक उसी तरह के प्रयास पार्षदों के चुनाव में किए जाते तो शायद पार्टी की इतनी बुरी गति नहीं होती. भाजपा को अब आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव को लक्ष्य लेकर काम करना पड़ेगा. आज भी पार्टी के पास की ऐसे मुद्दे हैं जो के द्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ जा सकता है. जरुरत है उसे भुनाने की. मंहगाई का मामला ऐसा बन चुका है कि सरकार को कभी भी ोरा जा सकता है.

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