Sunday, March 28, 2010

मीनाकुमारी की शायरी

फिल्म जगत में मीनाकुमारी ने दो दशकों से अधिक समय तक दर्शकों के दिलों में छायी रही। वह न केवल उच्चकोटि की तारिका थी बलिक एक शायर भी थी। अपने दर्द, ख्वाबों की तस्वीर और गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम लोगों को मालूम है।उनकी वसीयत के मुताबिक फिल्म लेखक गुलजार को मीनाकुमारी की २५० निजी डायरियां मिली। उन्हीं में लिखी नज्मों, गजलों, शेरों के आधार पर गुलजार ने मीनाकुमारी की शायरी का एकमात्र संकलन तैयार किया है। मीनाकुमारी की शायरी का कुछ अंश यहां इसलिए दिया जा रहा है ताकि जाने एक उम्दा कलाकार के दिल में कितनी पीड़ा और दर्द छिपा हुआ था।
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली।
जिसका जितना आंचल था,
उतनी ही सौगात मिली।
जब चाहा दिल को समझें,
हंसने की आवाज सुनी।
जैसे कोई कहता हो, लो
फिर तुमको अब मात मिली।
बातें कैसी, घातें क्या।
चलते रहना आठ पहर।
दिल सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली॥
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चांद तन्हा है, आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां-कहां तन्हा।
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा।
जिन्दगी क्या इसी को कहते हैं।
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा।
हमसफर कोई मिल गया जो कहीं।
दोनों चलते रहे यहां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा।
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मसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है,
न जाने कौन-सी उम्मीदों पे दिल ठहरा है।
तेरी आंखों में झलकते हुए इस गम की कसम
ए दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा है।
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प्यार एक ख्वाब था
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वक्त ने छीन लिया हौसला-ए-जब्ते सितम
अब तो हादिसा-ए-गम पे तड़प उठता है दिल
हर नए जख्म पे अब रुह बिलख उठती है
होंठ अगर हंस भी पड़े आंख छलक उठती है।
जिंदगी एक बिखरता हुआ दर्दाना है
एसा लगता है कि अब खत्म पर अफसाना है।
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दिन गुजरता नजर नहीं आता
रात काटे सेभी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उमऱ बांटे से भी नहीं बटती
अकेलेपन के अंधेरे में दूर-दूर तलक
यह एक खौफ जी पे धुआं बनके छाया है
फिसल के आंख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक-पलक ने जिस राह से उठाया है।
शाम का यह उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख बढ़ता जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो कुश है कि जलता जाता है
तेरी आवाज में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आंखों के तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आगोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है।
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गुलजार दावारा संपादित हिन्दी पाकेट बुक्स से पऱकाशित मीनाकुमारी की शायरी का कुछ अंश यहां दिया गया है। कितना अंतर है कल और आज में उस जमाने के कलाकार न केवल अच्छे अदाकारा थे बलिक उनके दिल में भी कितना दर्द छुपा हुआ था जो शायरी के रुप में सामने आ गया है।
------मीनाकुमारी की शायरी से साभार--------

2 comments:

  1. Bahut kam log ye jaante hain ki meena Kumariji ek bahut achchi shaayara thi. Unki shaayari me jo dard hai wo bahut kam shaayaron ki rachanaaon me padhney ko milta hai.
    " Raah dekha karega sadeeyon tak
    chod jaayenge ye jahan tanhaa "
    Meenaji, aapki shaayri ko bhulana bahut mushkil hai. Aapki zindgi ka dard aapki shaayri me aaya hai.

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  2. मीना जी अगर अदाकारा न होती तो शायद शायरी के क्षेत्र में उनका बड़ा नाम होता । चान्द तनहा है आसमा तनहा यह गज़ल मीना जी के जिस रिकॉर्ड मे थी i write rewrite... वह बरसो पहले खरीदा था मैने
    धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये ।
    बहुत दिनो से बाहर था इसलिये ब्लोग पर नही आ पाया भाई ।

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