दुर्ग छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरा पर पले-बढ़े सुविख्यात शिक्षाविद् राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत पं। जामवंत शर्मा के ज्येष्ठ सुपुत्र डॉ। बलदाऊ शर्मा ने सूतपुत्र महाकाव्य की रचना के बाद छत्तीसगढ़ राज्य को पुण्य श्लोक गुरू गोविन्द सिंह के अमल धवल चरित्र को खंडकाव्य के माध्यम से उजागर करने का कार्य किया है।
खंडकाव्य की परम्परा के अनुसार पांच सर्गों में एक ही छंद में निबध्द यह कृति अंचल के समाजसेवी हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ। एस.एस.ढिल्लन को समर्पित की गयी है।अपने भतीजे स्व. अंकित शर्मा की स्मृति में लिखा गया यह खंडकाव्य नई पीढ़ी को यह आभास कराने में सर्वथा समर्थ है कि गुरू गोविन्द सिंह का अलौकिक चरित्र , अगाध देशभकि्त और धर्म के पऱति निष्ठा, पऱभृति सदगुणों ने उनको देश का महानायक बना दिया। देश और धर्म के लिए अपने चार-चार पुत्रों की शहादत देने वाले गुरू गोविन्द सिंह का विराट व्यकि्त्व अपनी उपमा आप ही है।इस खंड काव्य के उस पऱसंग को पढ़ते समय रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब गुरू तेगबहादुर कश्मीरी पंडितों की व्यथा को सुनकर दऱवित हो जाते हैं और उनका मुखमंडल दुख से कुम्हला जाता है। उसी समय सात बरस का गोविन्द आकर उनसे दुख का कारण पूछता है और जब पिता गुरू तेगबहादुर कहते हैं कि बेटा इस समय देश किसी महात्मा की बलि चाहता है तब गोविन्द कहते हैं कि हे पिता वर्तमान में आपसे बड़ा महात्मा अन्य कौन है। पिता को शहादत का पाठ पढ़ाने वाला उसका महान पुत्र के अनिर्वचनीय चरित्र का उदघाटन डॉ. शर्मा ने बड़े ही सुंदर ढंग से किया है।
डॉ. शर्मा की यह कृति वैदेही पऱकाशन साकेत धाम अर्जुन्दा में मुदित होने को तैयार है। कृति की पूर्णता पर अनेक मित्रों ने बधाइयां भेजी है, जिनमें गुलबीर सिंह भाटिया, डॉ। सोधी. आर.ए.शर्मा, कैलाश शर्मा, जर्नादन शर्मा,के।के।शर्मा, सहित भारी संख्या में लोग शामिल हैं.
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डॉ.बलदाऊ प्रसाद शर्मा छत्तीसगढ़ के ख्यात साहित्यकारों मे से हैं । पूर्व में भी उनकी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । वे भीड़-भाड़ से अलग रहकर एक संन्यासी की तरह साहित्य सृजन में रत रहने वाले लोगों में से हैं । इसके अलावा 'निष्ठा साहित्य व संगीत समिति के माध्यम से भी उन्होने इस अंचल में संगीत व साहित्य के लिये बहुत कम किया है । इस खंडकाव्य के प्रकाशन के अवसर पर उन्हे हार्दिक शुभकामनायें व बधाई और राजेन्द्र भाई आपको इस कार्य के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ।- शरद कोकास , न्यू आदर्श नगर दुर्ग ।
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