आम आदमी की स्थिति आज बेहद ही खराब हो गई है। एक तरफ सरकार के नुमाइंदें नितनये घपले कर रहे हैं और आम आदमी मंहगाई के बोझ से बेहाल हो रही है। सरकार और उसमें बैठे नेताऔं का राग ही बदल गया है। आम आदमी की पीड़ा को कोई समझने को तैयार नहीं है। किसी शायर का यह कथन आज कितना सच लगता है।
खुशियां मनाने पर भी है मजबूर आदमी
आंसू बहाने पर भी है मजबूर आदमी
और मुस्कराने पर भी है मजबूर आदमी
दुनिया में आने पर भी है मजबूर आदमी
दुनिया से जाने पर भी है मजबूर आदमी...
सत्ता पर जब वापसी की बात होती है जब बड़े-बड़े वादे किए जाते है। आज देश की सत्ता कागऱेस के हाथ में है। यह वही पार्टी है जिसने सौ दिनों में मंहगाई कम करने का वादा की थी आज वही सरकार का मुखिया यह कहे कि मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे मंहगाई कम कर सकूं। माना जादू की छड़ी नहीं है किन्तु सरकार तो है जो कुछ भी कर सकती है। नेता जब अपनी कुसी बचाने के लिए आपातकाल लगा सकते हैं तो क्या मंहगाई कम करने के लिए एसा कोई कदम नहीं उठा सकते जिससे आम आदमी राहत महसूस कर सके। आम आदमी की चिंता आज किसे है। आम आदमी की स्थिति कुछ इस तरह की हो गई है॥
रिन्द बिकते हैं, जाम बिकता है
मैकदे का निजाम बिकता है
सुबह बिकता है, शाम बिकता है
आदमी अब तो आम बिकता है।
भूखों मरता है आज का आदमी
और उसका हर जुबान बिकता है।
लुभावन नारों वह हर बार बिकता है
फिर कौन उनकी परवाह करे
क्योंकि सबसे सस्ता हो गया है आज का आदमी....
किसी शायर की बरसों पहले लिखी यह पंक्तियां आज के आदमी और समय पर कितना सटिक बैठता है। मानों इंसानियत पर पहरा बैठा दिया गय़ा है। लोग केवल अपनी जेब भरने की चिंता में मगन है। मध्यम परिवार कैसे दो जून की रोटी जुगाड़ता है इस बात की चिता किसी को भी नहीं है। महंगाई का असर आज हर चीज पर पड़ने लगा है।इतना सबकुछ होने के बाद भी सरकार की नुमाइंदों का गैर जिम्मेदारा बयान आता है। यदि सरकार चलाने का साहस नहीं है, मंहगाई पर यदि नियंत्रण नहीं कर सकते तो गद्दी पर बैठे रहने का हक भी नहीं है। सरकार के लोग जिस तरह से घोटालों में फंसते जा रहे हैं उसे देखकर तो कोई भी आदमी सरकार से जवाबतलब कर सकता है। जिस सरकार का अपने मंत्रियों पर ही नियंत्रण नहीं वह मंहगाई पर क्या नियंत्रण करेगी।
सत्तारुढ़ पाटी को यह याद रखना चाहिए कि....
ए जनता के वादा को भूलने वाले
डूबने के करीब है तेरे सितार........,