Thursday, July 29, 2010

छ तीसगढ़ में नक्सली हिंसा का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। कल तक सिर्फ पुलिस के जवानों को निशाना बनाने वाले नक्सली अब नागरिकों को भी मौत की नींद सुलाने में परहेज नहीं कर रहे हैं। सुकमा-दंतेवाड़ा मार्ग परयात्री बस को उड़ाकर पुलिस जवान, एसपीओ सहित गांववालों कीहत्या कर नक्सलियोंने जता दिया है कि उनका कोई सिध्दांत नहीं है और वे केवल आंतक फैलाकर वनांचलों में अपना राज चलाना चाह रहे हैं। दरअसल 6 अप्रैल को चि तलनार के जंगल में 76 जवानों की हत्या के बाद सरकार की सुस्त नीति और योजना तथा कार्यवाही में विलंब का ही फायदा उठाकरनक्सली लगातार वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। चि तलनार की घटना के बाद बीजापुर मार्ग पर पुलिस वाहन उड़ाकर 8 जवानों को मारने के बाद अब या यात्री बस पर निशाना साधा है और बड़ी वारदात को अंजाम देकर एक बार फिर पुलिस और सरकार को पीछे खदेडऩे में कामयाबी का झंडा गाड़ दिया है। 76 जवानों की हत्या के बाद तो ऐसा कोहराम मचा था मानों सरकार अब नक्सली समस्या का खात्मा कर ही दम लेगी किन्तु समय बितने के साथ ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इतनी बड़ी घटना के बाद न तो पुलिस का रवैया बदला और न ही शासन प्रशासन की तंद्रा ही टूटी। घटना के बाद केवल निंदा और नक्सलियों को कोसने के अलावा कुछ भी नहीं बचा. ज्यादा हल्ला होने पर केन्दीय गृह मंत्री का वक्तव्य और कार्यवाही तेज करने संबंधी बयान ही आता है. कार्यवाही कहां होती है इसका कुछ पता नहीं चलता. दूसरी ओर नक्सली एक वारदात की सफलता के बाद दूसरी वारदात को अंजाम देने की रणनीति बनाने में जुट जाते हैं.नक्सली हिंसा के कारण छ तीसगढ़ आज देश के सबसे ज्यादा अशांत क्षेत्र की श्रेणी मेंआ गया है. पिछले तीन माह के दौरान यहां नक्सलियों ने दो सौ से अधिक सिविलियन और जवानों को निशाना बनाया है. आतंकवाद और अलगाववाद केयुध्द से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में भी इतनी हत्याएं नहीं हुई है. आज देश का पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उडि़सा, म यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, छ तीसगढ़ और महाराष्टृ नक्सलवादकी चपेट में है किन्तु सर्वाधिक वारदातें छ तीसगढ़ में होना गंभीर चिंता का विषय है. छ तीसगढ़ सरकार और सुरक्षा ऐजेसियां लगातार चूक रही है जिसका फायदा नक्सली उठा रहे हैं. यह सरकार और प्रदेश के लिए काफी कठिन दौर है. इसे आज भी हल्के से नहीं लिया जाना चाहिए. लगातार वारदातों ने पुलिस के खुफिया तंत्र पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. जब भी कोई बड़ी वारदातें होती है, उसके दूसरे दिन आईबी की रिपोर्ट आती है कि बस्तर केनक्सलियों का लश्कर से संबंध है और उन्हेंप्रशिक्षणऔर पैसा लश्कर से मिल रहा है. इसके पहलेनक्सलियों का नेपाल के माओवादियो, लिट्टे से भी संबंध की चर्चा चली थी.संबंध किससे है यह मायने नहीं रखता क्योंकि नक्सलियों को छ तीसगढ़ और खासकर वनांचलों से ही इतनी आय हो रही है किउन्हेंकहीं झांकने की जरुरत नहीं है और न ही किसी से रिश्तेदारी निभाने की आवश्यकता है. सरकार जब तक आर्थिक नाकेबंदी नहीं करेगी तब तकनक्सलियोंकी जड़ें कमजोर होना मुश्किल हैघने जंगल और चप्पे-चप्पेपर पुलिस की मौजूदगी के बाद भी नक्सलियों को खाने -पीने का सामान, गोला बारुद और हथियार कहां से मिल रहा है .इसका भंडाफोड़ करना जरुरी है. निश्चित रुप से बड़े शहरों से नक्सलीतार जुड़े हुए हैं और रसद सप्लाई भी इन्ही शहरों से हो रही है. जब तक नक्सलप्रभावित इलाके को सील नहीं किया जाएगा और इस क्षे त्र के आमद-रफ्तपर पैनी नजर नहीं रखी जाएगी तब तक नक्सलियों को मदद मिलते रहेगा. यह कितने दुर्भाग्यकी बात है कि हम नक्सलियोंसे निपटने के लिए सैकड़ों जवान वन क्षेत्रं में तैनात करते हैं किन्तु उनके राशन पानी की समुचित व्यवस्था भी नहीं कर सकते. जिस जवान को मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेने मानसिक और शारीरिक दृष्टि से पुष्ट बनाने की जरुरत हैउन्हीं जवानों को यदि खाने के लाले पड़ जाए तो वह कैसे नक्सलियों का मुकाबला कर पाएगी. चि तलनारघटना के बाद घायल जवानों ने राशन की कमी का मामला उठाया था. उसके दो दिन बाद भेजे जा रहे राशन को भी नक्सलियों ने लूट लिया .कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नक्सलियों से मोर्चा ले रहे जवानों के समक्ष विकट स्थिति है. घटनाएं होने के बाद कांग्रेस जहां सरकार की नाकामी का राग अलापती है तो राज्य सरकार कें द्र के सिर पर सवार हो जाती है. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तो राज्य सरकार को बर्खास्त कर राष्टृपति शासन लगाए जाने की वकालत की है. इस बात की क्या गारंटी है कि राष्टृपति शासन लगने के बाद नक्सली चुप बैठ जाएंगे. चूंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं है इसलिए उसे बर्खास्त कर दिया जाए. पूर्वमुख्यमंत्रीदिग्वीजय सिंह भी नक्सली मुद्दे पर अपने विवादास्पद बयान के कार ण सुर्खियों पर है. पहले उन्होंने अपने ही गृहमं त्री की आलोचना कर दी फिर माफी मांगकर मामला शांत कर लिया. अब दिग्गीराजा नक्सलियों को आतंकवादी मानने से इंकार कर रहे हैं. जिननक्सिलयों का कोई धर्म नहीं है और केवल बंदूक की भाषा बोल रहे हैं, और जो असहाय, गरीब आदिवासियों के साथ कर्तव्य के बोझ तले दबे जवानों की नृशंस हत्याकर रहे हैं. ऐसे सिरफिरों को आतंकवादी से भी खराब यदि कोई शब्दहो तो उससे संबोधित किया जाना चाहिए. बेहतर हो राजनीतिज्ञ नक्सलीमुद्दे पर राजनीति न करे क्योंकि चाहे दि िवजय सिंह का कार्यकाल हो चाहे अजीत जोगी या रमन सिंह का यह समस्या विरासत में मिली है. यह जरुर सच है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद नक्सली गतिविधियां तेजी से बढ़ी है. अब नक्सली बंद का खौफ वनांचलों में देखा जा सकता है.प्रमुख मार्गों को छोड़कर बस्तर के अंदरुनी सड़कों पर वाहनों के पहिए थम गये हैं. लोगों के आने जाने पर पाबंदी लग चुका है. इन क्षेत्रों में निवास करने वाले वनवासी किन परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहे हैं, इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी वारदात के बाद दिल्ली में गृहमंत्री और बाद में प्रधानमंत्रीके साथ मुख्यमंत्रीकी दो बड़ी बैठकें हो चुकी हैकिन्तुसरकार का कड़ा रुख अभी तक उभर कर सामने नहीं आया है. बड़ी कार्यवाही अथवानक्सलियोंके खिलाफ बनी योजना का सरकार और उनके नुमाइंदें ढिढोरा पीट देते हैं जिससे नक्सलियों को अपनी र णनीति बदलने का मौका मिल जाता है. न क्सलियों की खबर सरकार या पुलिस तक पहुंचाने वाले चुनिंदें लोग ही होंगे किन्तु सरकार या पुलिस की र णनीति नक्सलियों तक पहुंचाने वाले सैकड़ों होंगे. सरकार पूरे मामले में गोपनीयता बरते तो शायद बड़ी कार्यवाही को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं.यह बात सच है कि नक्सलियोके खिलाफ सरकार को लंबी लड़ाई लडऩी पडेगीकिन्तु लंबी लड़ाई की तैयारी में हमारा वर्तमान ही तहस-नहस न हो जाए इस बात को भी ध्यान रखने की जरुरत है.

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