Monday, October 31, 2011



राज्य स्थापना का ग्यारहवां वर्ष हम मनाने जा रहे हैं, इन ग्यारह वर्षो में छत्तीसगढ़ ने क्या खोया क्या पाया. यह आज चिंतन करने की जरुरत है.जहां तक विकास की बात है तो वह राजधानी रायपुर के आसपास ही सिमट कर रह गई है.विरासत में मिली नक्सली समस्या आज सुरसा की तरह मुंह फाड़ कर खड़ी है.वादे तो रोज किए जा रहे हैं किन्तु समस्याएं जस की तस है.एक तरफ अन्ना का आंदोलन चलता है तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के कई बड़े अधि...कारी रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं, आखिर इसे क्या कहें.सारी व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आती है.सरकार धान खरीदकरअपनी पीठ थपथपा रही है जबकि किसानों को उनकी उपज का लागत मूल्य भी नहीं िमल रहा है.गांवों की आबादी काम की तलाश में शहरों की ओर भाग रही है.सरकार के दो रुपयेकिलो चावल योजना से शहर और गावों में मजदूर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है. सरकारी अस्पताल की अंतिम सांसें चल रही है और सरकार निजी अस्पतालों सारी सुविधाएं दे रही है. आकड़े समेटने के चक्कर में शिविर के माध्यम से गरीबों को सामूहिक रुप सेअंधा बना दिया जाता है सरकार जांच के नाम पर केवल लीपापोती ही करती नजर आ रही है.यह सबकुछ पाया हमने नये राज्य के ग्यारह वर्षो में
तब भी हम कहते
छत्तीसगढ़
हैं, जय

फेस बुक का क्रेज

आजकल फेसबुक का जमाना आ गया है, लोग अब ब्लाग को विस्मृत करते जा रहे है। ब्लाग में जो विचार उभरकर आते थे वह निश्चित रुप से पठनीय हुआ करता था ...