मित्रता आज के परिवेश में नये लुक में समाज के सामने आया है, जबकि भारत में मित्रता की कहानी बहुत ही पुरानी है। हमारे छत्तीसगढ़ में गांव-गांव में मित्रता की मिसाल लाजवाब है। गांवों में कई पीढियों से यह परंपरा कायम है।छत्तीसगढ़ के गांवों में मितान बदने की परंपरा है। जाति, धर्म छोटे बड़े इस परंपरा में कभी बाधा नहीं बन पाया। मितान होने के बाद दो परिवारों के बीच एक एसा रिश्ता स्थापित हो जाता था जो कई पीढियों तक निभाया जाता था। आज भी छत्तीसगढ़ के गांवों में यह परंपरा कायम है और पुरानी पीढि़यों द्वारा मितान के लिए की गई कुर्बानी याद की जाती है। जहां पुरुष आपस में मितान बनते थे वहीं महिलाएं मितानिन बनती थी। यह दोनों शब्द इतनी कामयाब रही कि सरकार की कई योजनाओं में इसका उपयोग हो रहा है।
किन्तु आज के इस आधुनिक युग में मित्रता का मायने ही बदल गया है। अब मितान बदने की परंपरा विस्मृत हो रही है। पुरुष-पुरुष अब मितान नहीं बन पा रहे हैं बल्कि आज के युवा वर्ग का रुझान अपने हम उम युवतियों की ओर ज्यादा होता है। उसके पीछे पाश्चात्य संस्कृति कारण है जिसके पीछे हम भाग रहे हैं।टीवी सहित अन्य कई संसाधनों ने वर्तमान पीढी का ध्यान भटका दिया है जिसके कारण आज का युवा वर्ग भटका हुआ है। फेंडशिप डे के नाम पर होटलों में महफिल जमना और खाने पीने के साथ एक दूसरे के लिए जान देने का वादा सहित न जाने कितने हथकंडे अपनाए जाते है। और रोज किसी न किसी को दोस्ती की आड़ में धोखा ही मिल रहा है। दो दिन पूर्व ही अखबार में एक खबर थी कि इंटरनेट के माध्यम से एक युवक और एक युवती के बीच दोस्ती हुई जिसने बाद में दैहिक शोषण का रुप धर लिया और मामला पुलिस तक पहुंच गया है। दोस्ती का कहीं कोई विरोध नहीं किन्तु आज दोस्ती का जो स्वरुप सामने आ रहा है वह घातक है।
दोस्ती के बारे में समय-समय पर कवियों और शायरों ने कई कविताएं और शायरी की है। यहां कुछ शायरों का दोस्ती के बारे में तजुर्बा बयान कर रहा हूं।
गजल
दोस्त बन-बन के मिले, मुझको मिटाने वाले
मैंने देखे हैं कई रंग बदलने वाले
तुमने चुप रहकर सितम और भी ढ़ाया मुझ पर
तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पर हंसने वाले
मैं तो इक लाख के हाथों बिका करता हूं
और होंगे तेरे बाजार में बिकने वाले
आखिरी बांकी सलामी दिले मुश्तर ले लो
फिर न लौटेंगे इनके रोने वाले
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मर्सरत पे रिवाजो का सख्त पहरा है
न जाने कौन सी उम्मीद में दिल ठहरा है
तेरी आंखों में झलकते हुए इस गम की कसम
ए दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है
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Sunday, August 1, 2010
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